Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 849
________________ ८२४ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ यने एकत्रीशनो उदय नथी, ते एकेका उदये त्र्याणु ने नेव्याशी, ए वे बे सत्तास्थानक होय. तथा मनुष्यगति प्रायोग्य उगणत्रीशनो बंध, देव, नारकीने होय. तिहां २१-२५-२७-२८-२०- ए पांच उदयस्थानक होय. एकेका उदयें बाए अने याशी, ए बेबे सत्ता होय, तथा मनुष्यगति प्रायोग्य जिननाम सहित त्रीशनो बंध पण देव, नारकीने होय. तिहां २१ - २५-२७-२८-२०-३०, ए व उदयस्थानक होय. तिहां प्रत्येक घ्याणु अने नेव्याशी, ए वे बे सत्ता, देवताने होय, अने नारकी ने पांच उदयस्थानक होय. तिहां प्रत्येके एकज नेव्याशीनी सत्ता होय, केमके, जिननामनी सत्ता बतां श्राहारकनी सत्ता नरकमध्यें न होय ते माटें त्र्याणुनी सत्ता नारकी मध्यें न पामीयें, छाने एकत्रीशने उदयें बे सत्ता होय. सर्व थइ चोपन्न सत्ता थइ. देशविरति गुणगणे अहावीश ने उगणत्रीश, ए बे बंधस्थानक होय. तिहां मनुष्याने तिर्यंच, देशविरति, देवगति प्रायोग्य अहावीश बांधे, तिहां जांगा a. तथा तेहीज जिननाम सहित उगणत्रीश प्रकृति एकला मनुष्य देशविर तिज बांधे पण तिर्यंच न बांधे, तिहां जांगा था. सर्व मली जांगा शोल होय. 1 देशविर तियें सामान्यें २५-२१-२८-२०-३०-३१ - ए ब उदयस्थानक होय. तिहां श्रावने बंधे प्रथमना चार उदय तो वैक्रिय तिर्यंच, मनुष्यने होय, तिहां एकेको नांगो करतां चार जांगा थया तथा अद्यावीश, जंगपत्रीश, ए उदय सामन्या तिर्यंच, मनुष्यने तथा वैक्रियने पण होय. तिहां उदय जांगा व तथा त्रीशनो उदय तिर्यंच, मनुष्यने, तिहां ब संघयण, व संस्थानना विकल्पें जांगा बत्रीश, ते सुखर दुःखरें बहोत्तेर, ते शुनाशुन खगतियें ( १४४ ), प्रत्येक एकेका उदयें होय. हीं दौर्भाग्य, श्रनादेय ने यशः कीर्त्तिनो उदय गुण प्रत्यय जणी न होय तेथे तेना विकल्पना जांगा न होय, तथा वैक्रिय तिर्यंचनो उदय जांगो एक, मली ( २० ) जांगा थाय. तथा एकत्रीशनो उदय तिर्यंचने होय. तिहां जांगा (१४४) एम शरवाले (४४३ ) अहावीराने बंधें उदय जांगा होय. तथा गणत्रीशने बंधें मनुष्यने २५-२७-२८-२०-३०, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां प्रथमनां चार उदयस्थानक वैक्रियनां बे, तेनो नांगो एकेक तथा त्रीशना उदयनांगा ( १४४ ) मली ( १४८ ) जांगा थाय. शरवाले (२०१ ) जांगा याय. देशविर तिये ३-२-८० - ८०, ए चार सत्तास्थानक होय. तिहां जे श्रप्रमत्त, पूर्वकरणवालो तीर्थंकर तथा आहारक बांधीने पडे, ते परिणामे देशविरति याय तेने त्र्यानी सत्ता होय. शेषनी जावना अविरतिनी पेरें जाणवी. वे संवेध कहे बे. देशविरति मनुष्यने श्रद्वावीशने बंधें पच्चीश, सत्तावीश, · Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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