Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 848
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ २३ त्रीश थने एकत्रीश, ए आठ उदयस्थानक होय. तिहां एकवीशने उदये देवताना उदय नांगा आठ, मनुष्यना श्राप, पंचेंजियतिर्यंचना श्राप लेवा. केम के अविरति सम्यक्दृष्टि अपर्याप्तामध्ये न उपजे, माटें अपर्याप्तानो नांगो टाली शेष श्राप आठ नांगा लेवा तथा नारकीनो एक, एवं पञ्चीश उदय नांगा होय. ए दायिक सम्यकदृष्टि पूर्वबझायुवालो चारे गतिने विषे उपजे पण ते अपर्याप्ता मध्ये न उपजे, तेनी अपेक्षायें एकवीशनो उदय लेवो. पच्चीश तथा सत्तावीशनो उदय, देव अने नारकीने तथा वैक्रिय तिर्यंच मनुष्यने होय. तिहां नारकी दायिक तथा वेदक सम्यक्दृष्टि जाणवा अने देवता त्रिविध सम्यक्त्वी होय, एम चूर्णिमध्ये कडं . तथा बबीशनो उदय, पंचेंजियतिथंच मनुष्य दायिक तथा वेदक सम्यकदृष्टिने होय जेनणी उपशम सम्यक्दृष्टि तो तिर्यंच मनुष्य मध्ये न उपजे, तेमांहे पण वेदक सम्यक्दृष्टि तो मोहनीयनी बावीश प्रकृतिनी सत्तावालोज होय तथा अहावीश अने उगणत्रीश, ए बे उदय नारकी, तिर्यंच अने देवताने होय तथा त्रीशनो उदय एक नारकी विना बीजी त्रणे गतिमध्ये होय. तथा एकत्रीशनो उदय, पंचेंजियतिर्यंचने होय. अहीं सर्वना पोतपोताना उदय नांगा लेवा. अविरतियें सत्तास्थानक चार होय. तिहां जे अप्रमत्त, तथा अपूर्वकरण गुणगणे थाहारकठिक तथा जिननाम सहित देव प्रायोग्य एकत्रीश बांधीने वलतो मरण पामी देव थाय, तेनी अपेक्षायें त्र्याणुनी सत्ता जाणवी. तथा थाहारक चतुष्क बांधी वली परिणाम परावर्तियें मिथ्यात्व पामी चारगतिमाहेली नावे ते गतिमांहे उपजीने वला तिहां सम्यक्त्व पामे, तेने बाणुनी सत्ता जाणवी. ए सत्ता, देव, मनुष्यमांहे मिथ्यात्वें गया विना पण होय, माटे आंहीं लीधी तथा नेव्याशीनी सत्ता तो देव, मनुष्य अने नारकी अविरति सम्यकदृष्टिने जिननामनो बंध , ते माटें होय, तथा अव्याशीनी सत्ता चारे गतिना सम्यक्दृष्टिने होय. हवे सत्ता संवेध कहे . अविरति सम्यकदृष्टि पंचेंजिय तिर्यंच, मनुष्यने देव प्रायोग्य अहावीशने बंधे श्राप उदयस्थानक होय. तिहां पच्चीश श्रने सत्तावीशनो उदय, वैक्रिय तिर्यंच, मनुष्यने होय. बीजा उ सामान्य होय. ते एकेका उदयें वाणु अने अध्याशी, ए बेबे सत्तास्थानक होय. एम आउ उदयनां शोल सत्तास्थानक होय, तथा उगणत्रीशनो बंध एक देवगति प्रायोग्य, बीजो मनुष्यगति प्रायोग्य होय. तिहां देवगति प्रायोग्य जिननाम सहित अंगणत्रीशना बंधक मनुष्यज होय, परंतु तिर्यंच न होय, तेने एकत्रीशना उदय विना साते उदयस्थानक होय, केमके मनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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