Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 867
________________ G४२ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ समय लगें कहे. ए अपूर्वकरणने विषे प्रवेश करतो जीव, प्रथम समयथीज १ स्थितिघात, २ रसघात, ३ गुणश्रेणि, ४ गुणसंक्रम, ५ अन्यस्थितिबंध, ए पांच वानां समकालें एकगं करवाने प्रवर्ते. । तिहां प्रथम स्थितिघात एटले शुं ? तोके- जे क्रोधादिकनी स्थिति जोगववी रही होय, ते सत्तामध्ये थी अग्रजागनी स्थिति उकेरे, एटले ते स्थितिसत्तानो अपनाग उत्कृष्टो तो घणा सागरोपम प्रमाण होय अने जघन्यश्री तो पक्ष्योपमना असंख्यातमा नाग प्रमाण होय, ते स्थितिखंमने खंमें एटले उकेरे .ते उकेरीने तेनुं दलिक जे हेग्ली श्राद्यस्थिति खंमन करवाने रही , ते दलमध्ये तेना दलने प्रदेपे. ए रीतें अंतरमुहूर्त्तकालें ते स्थितिखंडन उकेरे. एमज वली जे शेष स्थिति रहे, तेना अग्रजागथकी पत्योपमना असंख्यातमा नाग प्रमाण स्थिति करी तेनुं दल अंतरमुहूर्ते पूर्वोक्त प्रकारेंज बाकी रहेला, हेठला स्थितिदलमध्ये नेले, एम अंतरमुहूर्ते अंतरमुहूर्ते स्थितिमाहे तेनुं दल नेलतां अपूर्वकरणना कालमांहे घणा हजार स्थितिना खंड खपी जाय,तेवारे जे अपूर्वकरणने प्रथम समयें जेटली कर्मनी स्थितिनी सत्ता हती, तेथकी संख्यातगुणहीन स्थितिनी सत्ता थ. ए स्थितिघातनुं स्वरूप कडं. __ हवे रसघात कहे जे. रसघात ते जे अशुज कर्मनो रस जोगव्या विनानो रह्यो बे, ते रसनो अनंतमो नाग मूकीने शेष अनुनागना नाग सर्व अंतरमुहूर्ते खपावे, विनाशे, तेवार पठी वली पण जे अनंतमो नाग रह्यो बेतेनो अनंतमोजाग मूकीने शेष अनुजागना जाग सर्व आंतरमुहूर्ते खपावे, तेवार पड़ी वली ते पूर्वे मूक्यो एवो जे अनंतमो नाग रह्यो ने तेनो वली अनंतमो नाग मूकीने शेष अनुनागना नाग सर्व अंतरमुहूर्ते विनाशे. एम अनुनाग खंमनां अनेक सहस्त्र, एक स्थितिखंमने विषे व्यतिक्रमे अने ते स्थितिखंमना अनेक सहस्रं अपूर्वकरण समाप्त थाय. रसखंमना कालथकी स्थितिखंडनो काल संख्यातगुणो अधिक जाणवो. तेथकी अपूर्वकरण काल संख्यातगुणो अधिक बे. हवे गुणश्रेणि कहे . गुणश्रेणि ते अंतरमुहूर्त प्रमाण कर्मस्थिति थकी उपरली कर्मस्थिति जे वर्त बे, ते मध्ये थी दलिक लेने पोतानी उदयावलिकानी नपरली स्थितिमाहे समय समय प्रत्ये असंख्यातगुण असंख्यातगुण चढतुं दल संक्रमावे, नेले, ते श्रावी रीते जे प्रथम समयें स्तोक, तेथकी बीजे समये असंख्यातगुणुं चढतुं नेले, ते थकी वली त्रीजे समय असंख्यातगुणुं वधतुं नेले, एम यावत् अंतरमुहूर्त्तना चरम समय पर्यंत कहे. ते अंतरमुहर्त तो अपूर्वकरण अने अनिवृत्तिकरणना कालथकी लगारेंक अधिक जाणवं. ए प्रथम समयें ग्रडं जे दल, तेनो निक्षेप विधि कह्यो. एम द्वितीयादिक समयथी मामीने यावत् बेहला समय पर्यंत समयें समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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