Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 893
________________ ६८ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ पेरें कारमुं परकत्रिम नथी, एवं सिद्धिसुदं के० सिद्धपदनुं सुख अनिर्वचनीय श्रानिय के० निधन एटले जेनो केवारें नाश नथी अर्थात् जेनो केवारें बेहको नथी, अंत न आवे, जेनो दय नथी तथा राग द्वेषादिक जे सुखना बाधक बे, तेने सर्वथा दय कया महाबाहं के० छाव्याबाध एटले बाधाकारी पीकाकारी एवा जे रोगादिक ते मूलथी उन्मूल्या बे ते जणी ते फरी प्रगट न थाय. ते विना पीडा न उपजे ते मातें. व्याबाध सुख बे. वली तिरयणसारं के० त्रण रत्न जे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, तेनो सार एटले फलभूत बे एटले रत्नत्रयीनो यत्न करवायी कर्म दय थाय बे अने कर्म क्षय थयाथी मोदसुख लइयें ढैयें. माटे सिद्धिसुखनो अभिलाष करनारायें अवश्य र त्रयीनो आश्रय करवो, केमके सिद्धना सुखनुं कारणभूत ते रत्नत्रयज बें, एवा मोक्षसुखप्रत्यें ते परमात्मा सिद्ध जीव अणुहवंति के अनुजवे बे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ए० ॥ ॥ हवे विशेष जाणवानी अभिलाषावंतने उपदेश कहे . ॥ डरदिगम निजण परम, व रुइर बहु जंग दिठिवायाई ॥ अवा अणुरिवा, बंधोदय संत कम्माणं ॥ ८१ ॥ अर्थ - डुरहिगम के डुरधिगम ते गंजीरार्थ एटले प्रमाण, नय, निदेपादिकें करी घणो दुर्लन लहीयें, एवो अर्थ बे जेने विषे, वली निजल के० निपुण एटले सूझबुद्धिने गम्य एवो परम के० परमउत्कृष्ट अथवा परमार्थ एटले यथावस्थित छा नो विचार, तेणे करी रुइर के० रुचिर एटले सुद्दामणुं सूक्ष्ममतिना घणीना मनने श्राह्रादनुं करनार, एवं तथा बहुजंग के० बंधोदय सत्ताना घणा जांगा एटले वि. कल्प बे जेने विषे एवं जे दिवाया के० दृष्टिवादनामा बारमुं अंग ते थकी बंधोदयसंतकम्माणं के० बंधोदय सत्तावंत कर्मप्रकृतिना श्रासरित्र्यवा के० अहींयां जे नयी कह्या, ते अर्थ, सर्व तिहांथी जाणवा, जे जणी अहीं तो संदेपरुचि जीवना अनुग्रहने ा लेशमात्र अर्थ देखाड्यो बे, पण विशेषार्थ तिहांथी समजवो ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ १ ॥ ॥ हवे ग्रंथकर्त्ता श्राचार्य, पोतानुं मानरहितपणुं श्रने अनुप देखाडे बे. ॥ जो जब पडिपुन्नो, अहो अप्पागमेण बंधोति ॥ तं खमण बहुसुया, पूरे ऊणं परिकदंतु ॥ २ ॥ अर्थ- जोजन अपमिपुन्नोवो के० ए सप्ततिकानामा ग्रंथने विषे जिहां बंधोदय सत्ताने विषे जे जे अर्थ अपरिपूर्ण एटले अधुरो कहेवाणो होय, केमके अप्पागमेष Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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