Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
G६२
सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ प्रतिसमये स्थितिघातादिकें करी वेदतो वेदतो त्यां लगें खपावे, ज्यां लगे सूक्ष्मसंपराय अझाना संख्याता नाग जाय, अने एक नाग शेष रहे, त्यां लगें खपावे. हवे शेष एक जाग रहे, तेवारें संज्वलन लोजने सर्व अपवर्तनाकरणे अपवर्त्तिने एटले अपवर्तना तेने कहीयें के जे कर्मनी स्थितिरसन घटामवं एटसे संज्वलन लोजनी स्थितिरस घटाडीने शेष सूक्ष्मसंपराय अझा जेटलो राखे, हजी पण सूक्ष्मसंपराव अझा अंतरमुहर्त प्रमाण रही , तेवारें मोहनीयना स्थितिघातादिक पांच पदार्थ विरम्या, परंतु हजी बीजा कर्मोनां: स्थितिघातादिक प्रवर्ते ले. अहींयां जे कर्मनी स्थिति तथा रसनुं घटाडतुं तेने थपवर्त्तना कहीयें. एटले संज्वलना लोजनी स्थिति तथा रसने घटामीने शेष सूक्ष्मसंपराय असा जेटलो राखे. हवे ते लोजनी अपवतेली स्थितिने वेदतो वेदतो त्यां लगें गयो, ज्यां लगे संज्वलन लोन समयाधिक श्रावलि मात्र रह्यो, तिहां एनी उदीरणा विराम पामी, केवल उदयें करीज वेदे दे, ते बेहला समय लगें जाणवू. अने बेहले समय ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक, द. र्शनावरण चार, उच्चैौत्र, यशःकीर्ति, ए शोल प्रकृतिनो बंधविछेद थाय तथा मोहनीयनो उदय अने सत्ता पण विछेद थाय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ४ ॥
खीण कसाय उ चरिमे, निदं पयलं च दिणग्न मबो॥
आवरण मंतराए, उन मदो चरम समयम्मि ॥ ५॥ अर्थ- संज्वलन लोन सर्व क्षय कस्या पनी क्षीण कषाय थयो तेने पण मोहनीय विना बीजां शेष कर्मोनी स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणी, गुणसंक्रम, तेमज पू. र्वली रीतें प्रवर्ते. ते दीण कषायाछाना संख्याता जाग जाय, त्यां लगे प्रवर्ते अने शेष एक नाग रहे, तेवारें पांच ज्ञानावरण, पांच अंतराय, चार दर्शनावरण अने बे निजा, एवं शोल प्रकृतिनी सत्तानी स्थिति सर्व अपवर्तनायें अपवर्तिने एटले घटामीने दोण कषायनी श्रद्धा सरखी करे, पण निमाछिकनी स्थिति स्वरूपनी अपेदायें एक समय हीन करें अने कर्मरूं बराबर होय ते क्षीण कषाय अशा इजी अंतरमुहर्त प्रमाण रही , तेवार ते शोल प्रकृतिनां स्थितिघातादिक विराम पामे, बीजी शेष प्रकृतिनां स्थितिघातादिक हजी विराम पाम्यां नथी, ए शोल प्रकृतिने उदय उदीरणायें करीने वेदतां वेदतां समयाधिक श्रावलि मात्र शेष रहे, त्यां लगें वेदे, पनी उदीरणा विरमे, तेवारें एक श्रावलिकामात्र केवल उदयें करीने वेदे. ते यावत् खीणकसायाचरिमे के वीणकषायना हिचरम समयें एटले बेहला समयथकी पूर्वलो समय तेने विचरम समयें कहीये त्यांसुधी वेदे, पड़ी ते विचरम समयें ।नदंपयलंचहिणवउमडो के० निशा अने प्रचलाने बद्मस्थ थको हणे एटवे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896