Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 890
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ७६५ वैक्रिय बने थाहारक शरीर अने ४ वैक्रियाहारक बंधन, ६ वैक्रियथाहारकसंघातन, वैक्रिय थाहारकांगोपांग, ए. देवगति, १० देवानुपूर्वी, ए दश प्रकृति देवगति सहगत कहीयें. ए दश प्रकृति, पुचरिमसमयंजविअंमिखीअंति के नव्यमोक्षगामी जीवने विचरम समयें क्षय जाय. तथा सविवागेअरनामा के० तथा तेहीज हिचरम समय जे प्रकृति विपाके वर्ते बे, एटले जे नामकर्मनी नव प्रकृतिनो तिहां विपाक एटले उदय , ते थकी इतर एटले बीजी प्रकृति, जे प्रकृतिठनो तिहां उदय नथी, तेवी प्रकृतिनां नाम कहे . ३ औदारिक, तैजस अने कार्मण, ए त्रण शरीर, ६ तथा ए त्रणनां बंधन, ए ए त्रणनां संघातन, १५ र संस्थान, १ संघयण, २२ औदारिकांगोपांग, २६ वर्णचतुष्क, २७ मनुष्यानुपूर्वी, २७ पराघात, ए उपघात, ३० अगुरुलघु, ३५ शुनाशुनखगति, ३३ प्रत्येक, ३४ अपर्याप्त, ३५ उश्वास, ३६ थिर, ३७ अथिर, ३० शुन, ३ए अशुज, ४० सुखर, ४१ पुःखर, ४२ पुर्नग ४३ अनादेय, ४४ अयशःकीर्ति, ४५ निर्माण, ए पिस्तालीश प्रकृति पण विच, रम समयें क्षय पामे तथा नीआगोशंपितलेव के नीचगोत्र श्रने अपि शब्दथकी बे वेदनीयमांहे एक वेदनीय, ए सर्व मली प्रथमनी दश नेलतां सत्तावन प्रकृति हिचरम समयें क्षय थाय, सत्ताथी टले. अन्नयर वेअणिजं, मणुानअ मुच्चगोअ नवनामे ॥ वेएइ अजोगि जिणो, नकोस जहन्न मिक्कारे ॥६॥ अर्थ-हवे हिचरम समय क्षय गयुं जे वेदनीय, तेथकी अन्नयरवेअपिऊ के० अनेरे शाता अशातामांहेलु एक वेदनीय अने मणुयाउअं के मनुष्यायु, उच्चगोश के उच्चैर्गोत्र, नवनामे के नामकर्मनी नव प्रकृति, एवं बार प्रकृतिने, वेएश्चजोगिजिणो के अयोगी केवली वेदे . ते नकोस के उत्कृष्टपणे तीर्थकर वेदे ने अने जहन्नमिकारे के जघन्यथकी तो सामान्य केवली होय. ते तीर्थकरनामकर्म विना अगीचार प्रकृति वेदे ॥ इति समुच्चयार्थः॥ ६॥ ॥ हवे नामकर्मनी नव प्रकृतिनां नाम कहे . ॥ मणुअगइ जा तस बा, यरं च पळत्त सुलग आऊं ॥ जसकित्ती तिबयरं, नामस्स हवंति नव एआ॥७ ... अर्थ-मणुश्रग के मनुष्यगति, जा के पंचेंजियजाति, तस के प्रसनाम, बायरंच के बादरनाम, पजात्त के पर्याप्तनाम, सुलग के सुजगनाम, थाइड के १०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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