Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
८४७
क्व पामतो कोइएक देश विरति सहित अने कोइएक सर्वविरति सहित पण पडिवजे, जे जी कयुं बे के "सम्मत्तेणं सम्मग, सर्वदेसंच कोइ परिवड” ते माटें देश विरति तथा प्रमत्त अने अप्रमत्त संयतने विषे पण मिथ्यात्वनी उपशमना पामीयें ढैयें.
वे वेदसम्यक् ष्टिने प्रदेशोदयनी अपेक्षायें मिथ्यात्वनी उपशमनानो प्रकार he a. कोक वेदसम्यकदृष्टि जीव, संयमने विषे प्रवर्त्तमान थको अंतरमुहूर्त्त मात्र का दर्शन त्रिकने उपशमावे बे. तिहां दर्शनत्रिक उपशमावतां त्रण करण करपडे, तेनो विधि पूर्वे कह्यो. ते रीतें त्यां लगें जाणवो, ज्यांलगें छा निवृत्तिकरणद्धाना संख्याता जाग गये थके अंतरकरण करे बे. ते अंतरकरणी अंतरकरण करतो को सम्यक्त्वनी प्रथम स्थिति अंतरमुहूर्त्त प्रमाण स्थापे घने मिथ्यात्व, मिश्रमोहनीयनी प्रथम स्थिति यावलिकामात्र स्थापे पछी तेना दलिक उकेरी उकेरीने सम्यक्वनी प्रथम स्थितिमध्यें प्रक्षेपे. तिहां मिथ्यात्व अने मिश्र, ए बेहुनी प्रथम स्थितिनुं जे दलिक बेतेने सम्यक्त्वनी प्रथम स्थितिमध्यें स्तिबुक संक्रमे करी संक्रसम्यक्त्व प्रथम स्थितिना दलना रसोदय विपाकना अनुजववाथकी जोगवतां ते अनुक्रमें ही थाय. तेवारें औपशमिकसम्यकदृष्टि थाय. अने ए त्रणे मोहनीयनी उपरली स्थितिनुं दल उपशमाववानो तो पूर्व जेम अनंतानुबंधी श्रानी उपरली स्थितिनी उपशमनानो प्रकार कह्यो बे, तेनी पेरें जावो. ए रीतें दर्शनमोहनी ने उपशमावीने पढी चारित्रमोहनीय, उपशमाववाने प्रवर्त्ततो पुरुष वली पण तेहीज यथाप्रवृत्त्यादिक त्रण करण करे. तिहां श्रप्रमत्तने श्रप्रमत्तगुणठाणें यथाप्रवृत्तिकरण, तथा पूर्वकरण गुणगणे अपूर्वकरण अने निवृत्तिकरण गुणठाणे निवृत्तिकरण, तथा ए त्रण करण करे तेनुं स्वरूप पूर्वली पेरें जाणवुं, पण अहींयां एटलुं विशेष जे पूर्व करणें गुणसंक्रम तो न बंधाती एवी सघली अशुभ प्रकृतिनोज प्रवर्त्ते. तथा पूर्व कराना संख्याता जाग गये थके निद्रा प्रचलानो बंधविच्छेद यते ढुंते वारी घणा स्थि तिखंगनां सहस्र यतिक्रमते थके अपूर्व करणाद्धाना संख्याता जाग गये थके शेष एक जाग थाकते थके देवद्विक, पंचेंद्रियजाति, वैक्रियद्विक,
दारक, तेजस, कार्मण, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसनवक, देय, निर्माण अने जिननाम, ए त्रीश प्रकृतिनो बंधविच्छेद थाय, तेवार पी स्थितिखंग पृथक्त्व गये थके अपूर्वकरणने बेहले समयें हास्य, रति, जय अने जुगुप्सा, ए चार प्रकृतिनो बंध विच्छेद हुंते हास्य, रति, रति, शोक, जय ने जुगुप्सा, ए बनो उदय तिहां होय. हीं सर्व मोहनीयकर्मना बेहले समयें देशोपशमना, निधत्ति, निकाचनाना करणने विछेदे. तेवार पढी यागले समयें अनिवृत्तिकरणें प्रवेश करे, तिदां
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