Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ . ३३ राखीने कम्मपगश्गणाणि के० श्रावे कर्म प्रकृतिनां स्थानक, बंधुदयसंतकम्माण के बंध, उदय, सत्ता, कर्मनी तेना संवेधे गश्याएहिं के० गत्यादिक एटले गति, इंजिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, वेश्या, नव्य, सम्यक्त्व, संझी, श्राहारी, ए चौद जीवस्थानकें तथा ए चौदना उत्तर बाशठ मार्गणा नेदने स्थानकें करीने सत्पद प्ररूपणादिक असु के आठ अनुयोगहारने विषे चनप्पयारेण के प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, रसबंध अने प्रदेशबंध, ए चार प्रकारे कदेवाने नेत्राणि के जाणवा. ॥ ६६ ॥ ६७॥
हवे ए आठ अनुयोग हार लखीयें बैयें. संतपयपरूवणाए एटले बता पदनी प्ररूपणा, ए एक पद नणी घट पदनी पेरें अतुं न होय, जे बता पदार्थ वाचक पद न होय, ते एक पद पण न होय. जेम वंध्यापुत्र, ए शब्द बे पदनो माटे ते पद श्रब्तुं . तेनी पेरें ए पद नथी, तेजणी ए पद साचां ने एटले अर्थ प्ररूपणाना नेद ते अनु कहेतां वस्तु प्रतिपादन कस्या पली योग कहेतां सर्व प्रकारे वस्तु श्राप अनुयोगधार, अणु कहेतां सूत्र तेनी साथें योग कहेता अर्थजोमवं, तेनां छार कहेतां बारणां एटले वस्तुनो निर्णय करवो, तेनां छार श्राव जाणवां. तिहां प्रथम उता पदनी प्ररूपणा, ते जेम बंध, उदय, सत्ता तथा प्रकृति, स्थिति, रस, प्रदेश, ए सर्व पद साचां , आप आपणा पदार्थनां वाचक , एकेक पद जणी घट पदनी पेरें उतांबे, पण वंध्यापुत्रनी पेरें अबतां नथी, तेनां स्थानक, जेनो जिहां सन्नाव, ते तिहां कहेवा. ते प्रथम बता पदनी प्ररूपणा नामा द्वार जाणवू.
तथा बीजु अव्यप्रमाण हार. ते एम के, ए प्रकृति स्थानकना अव्य केटलां होय ? एम प्रमाणन कहे, ते बीजुं छार. तथा एकेक प्रकृतिस्थान अव्य, केटला
आकाश प्रदेश क्षेत्र रुंधे, ए अर्थ कहे ते क्षेत्रप्रशंसानामा त्रीजु धारतथा एकेक स्थानके जीव केटला काल पर्यंत रहे, एम कहेवू ते चो) काल छार, तथा ए बंधस्थानक तथा उदयस्थानक बांड्युं ते वली केटले कालें जघन्य तथा उत्कृष्टे श्रांतरे लहे, ए पांचमुंअंतर छार. तथा लोकने केटले नागें एकेक स्थानक होय, एम कहे, ते हा जाग हारनो विचार जाणवो. तथा कयुं स्थानक उदयिका दिक बनाव मध्ये कया नावें होय, ते सातमुं नाव हार. तथा कया स्थानकथी कयु स्थानक अव्य, क्षेत्र, काल अने नावनी अपेदायें घणुं होय तथा थोडं होय, . अथवा बराबर होय, एम विचारवं, ते बाग्मुं अल्पबहुत्व धार. ए था अनुयोगहारे करी विचारतां पदाथेनुं सम्यज्ञान होय, तिहां सत्पदप्ररूपणायें करीने पणगणाने विषे गति तथा इंजियमार्गणायें बंधोदय सत्तानो संवेध करो. एने
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