Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 864
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ ७३ए अर्थ-तिबयरदेवनिरिथाउअंच के तीर्थकर नामकर्म, देवायु अने नरकायु, ए त्रण प्रकृति तिसुतिसुगईसुबोधवं के त्रण त्रण गतिने विषे होय एम जाणवू. तिहां तीर्थकरनामकर्मनी सत्ता, नारकी, देवता तथा मनुष्यगतिने विषे होय, पण तियंचगतिमध्ये न होय. केमके, तीर्थकर सत्कर्मा तिर्यंचमध्ये जाय नहिं तेमाटे. तथा देवायुनी सत्ता, मनुष्य, तिर्यंच अने देवगति मध्ये होय, पण नारकी मध्ये न होय, तथा नरकायुनी सत्ता, मनुष्य, तिर्यंच अने नरकगति मध्ये होय, पण देवगतिमध्ये न होय, अने अवसेसापयडी के अवशेष सर्व प्रकृतिनी सत्ता, हवं तिसवासुविग सु के० सर्व चारे गतिने विषे पण होय. एटले तिर्यंचमध्ये तीर्थकरनाम विना सर्व प्रकृति सत्तायें होय, देवगतिमध्ये नरकायु विना सर्व प्रकृति सत्तायें होय, नरकगतिमध्ये देवायु विना सर्व प्रकृति सत्तायें होय. ॥ ७ ॥ ॥ हवे गुणगणाने विषे पूर्व जे बंधोदय सत्तास्थानकनो संवेध कह्यो, ते गुणगणां तो प्रायें उपशमश्रेणीयें तथा दपकश्रेणीय होय, तेमाटे ते श्रेणी कहे .॥ ॥तिहां प्रथम उपशमश्रेणि कहे .॥ पढम कसाय चनकं, दसण तिग सत्तगावि नवसंता ॥ अविरय सम्मत्ता, जाव नियहित्ति नायबा ॥ ७ ॥ अर्थ-पढमकसायचजकं के पहेला अनंतानुबंधीआ चार कषाय तथा सणतिग के दर्शनत्रिक, ते मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने सम्यक्त्वमोहनीय, ए सत्तगाविउवसंता के सात प्रकृति उपशांत होय. ते अविरयसम्मत्ता के अविरतिसम्यकदृष्टि गुणगणाथकी मामीने जावनियहित्तिनायबा के० यावत् निवृत्तिनामे आठमा गुणगणा लगे जाणवी. तिहां सातमा लगें यथायोग्यपणे उपशांत होय अने अपूर्वकरणे तो निश्चयथकीज उपशांत होय. ॥ ७ ॥ प्रथम अनंतानुबंधीया चार कषाय तथा दर्शन त्रिक एटले मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय श्रने सम्यक्त्वमोहनीय, ए सात मोहनीयनी प्रकृतिना रसोदयनी अपेक्षायें अविरतिसम्यक्दृष्टि गुणगणाथी मामीने अपूर्वकरणनामा बाग्मे गुणगणे चढतां पर्यंत उपशांत पामीयें अने कोशएकने प्रदेशोदयनी अपेक्षायें पण अविरति सम्यक्दृष्टिने एज चोथे गुणगणे उपशांत पामी कहीये. तथा अपूर्वकरणे तो ए साते प्रकृति रसोदय आश्री तथा प्रदेशोदय श्राश्री पण उपशांत पामी कहीयें. तिहां प्र. थम अनंतानुबंधीयानी उपशमनानो प्रकार कहे . थविर तिसम्यक्दृष्टि, देशविरति, प्रमत्त तथा अप्रमत्त, ए चार गुणगणे वर्तता जीवमांहेलो कोइ पण जीव, जघन्य परिणामे तेजो, मध्यम परिणामें पद्म अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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