Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 855
________________ ३० सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ विना बाकीनां इकारस के श्रगीबारे सत्तास्थानक होय. अने देवताने त्र्याणु, वाणु, नेव्याशी अने अग्याशी, ए चउकं के चार सत्तास्थानक होय. हवे संवेध कहे . नारकीने पंचेंजिय तिर्यंच प्रायोग्य उंगणत्रीश बांधतां पोताना पाँच उदयस्थानकें प्रत्येके बाणु अने अठ्याशी, ए बे सत्तास्थानक होय. तीर्थकरनामनी सत्तायें तिर्यंचगति प्रायोग्य बंध न होय तेजणी नेव्याशीनी सत्ता न होय, तथा मनुष्यगति प्रायोग्य उगणत्रीशने बंधे पांच उदयस्थानकें नेव्याशी सहित त्रण त्रण सत्ता होय, तथा उद्योत सहित तिर्यंचगति प्रायोग्य त्रीशने बंधे जंगणत्रीशना बंधनी पेरें पांचे उदयें बेबे सत्ता होय. तथा जिननाम सहित मनुष्यगति प्रायोग्य त्रीशने बंधे पांचे उदयें एक नेव्याशीनी सत्ता, प्रत्येकें होय. सर्व थर नरकगतिने विषे चालीश सत्तास्थानक होय. तिर्यंचगतिने विषे बंधोदय सत्ता संवेध कहे जे. त्रेवीशने बंधे एकवीश, चोवीश, पच्चीश, बबीश, ए चार उदयें ए२-७-६--७, ए पांच पांच सत्ता अने बाकीनां २७-२-ए-३०-३१, ए पांच उदयें अहोत्तेर विना चार चार सत्ता होय. सर्व त्रेवीशने बंधे चालीश सत्ता थ. तेम पच्चीश तथा बबीशने बंधे पण चालीश, चालीश सत्ता जाणवी तथा उगणत्रीश अने त्रीशने बंधे पण एमज चालीश सत्ता कदेवी. पण एटलुं विशेष जे मनुष्यगति प्रायोग्य जंगणत्रीशने बंधे सर्व उदयस्थानके अठोत्तेरनी सत्ता न होय, बाकी चार सत्ता सर्व उदय होय. तथा अहावीशने बंधे चोवीशनो उदय न होय, केमके चोवीशनो उदय एकेजियने होय. तेने अहावीशनो बंध नथी, जेमाटे देव, नारकी, ए बे गतिमध्ये एकेजियने जावू नथी अने अहावीशनो बंध तो देव, नरक प्रायोग्य . माटें बाकी आठ उदय होय, तिहां एकवीश, बीश, अहावीश, उंगणत्रीश श्रने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक दायिक सम्यक्दृष्टि तथा वेदक सम्यकदृष्टि तो जेने मोहनीयनी बावीशनी सत्ता होय,एवाने पूर्वे आयु बांध्यां उदय होय, तेनी अपेक्षायें जाणवा. तिहां एकेका उदय बाणु अने अव्याशी, ए बे सत्तास्थानक प्रत्येकें होय, तथा पच्चीश श्रने सत्तावीश, ए बे उदयस्थानक वैक्रिय करतां पंचेंजिय तिर्यंचने होय. तिहां पण तेहीज बे सत्तास्थानक होय, तथा त्रीश, एकत्रीश, ए बे उदय सर्व पर्याप्तियें पर्याप्ता एवा सम्यक्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टिने जाणवा, तिहां बाणु, श्रव्याशी अने व्याशी, ए, प्रण सत्ता होय. तिहां व्याशीनी सत्ता, मिथ्याष्टिनेज होय. अने सम्यकदृष्टिने 'अवश्य देवछिकनो बंध होय, तेथी तेने ए सत्ता न होय. सर्व अहावीशने बंधे अढार सत्ता होय. एम तिर्यंचगति मध्ये सर्व बंधस्थानकें (१७) सत्ता होय. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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