Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 798
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ७७३ नांगा जाणवा. एम सहज पंचेजिय तिर्यंचने एड उदयस्थानकें थश्ने नांगा (४ए०६ ) थाय. _हवे पंचेंजिय तिर्यंचने वैक्रिय करतां पच्चीश, सत्तावीश, अद्यावीश, उगणत्रीश, अने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां ५ वैक्रियधिक, ३ समचतुरस्त्रसंस्थान, ४ उपघात, ५ तिर्यंचगति, ए त्रसचतुष्क, १० पंचेंजियजाति, ११ सौनाग्य अथवा दौ ग्य, १५ श्रादेय अथवा अनादेय, १३ यशःकीर्ति अथवा अयशःकीर्ति, ए तेर प्रकृति साथें बार ध्रुवोदयी मेलवतां पच्चीशनो उदय थाय. अहीं सौनाग्य दौर्लाग्यना विकल्पं नांगा बे थाय, तेने श्रादेय अनादेय साथें गुणतां चार, ते वली यश अयशें गुणतां श्राउ नांगा थाय. अहीं वैक्रियशरीर करतां संघयण न होय, अने संस्थान तो एकज समचतुरस्त्र होय, माटें तेना नांगा न थाय. हवे ते वैक्रीयशरीरनी पर्याप्ति पूरीथयो पली, एक पराघात, बीजी शुनविहायोगति, ए बे नेलतां सत्तावीशनो उदय थाय. तिहां पण तेज श्राव नांगा पूर्ववत् जाणवा. ते पली वैक्रीयशरीरें श्वासोश्वास पर्याप्ति पूरी थया पली उश्वासनो उदय नेलीयें, तेवारें अहावीशनो उदय थाय. अहींयां पण तेहिज बाठ नांगा जाणवा. अथवा शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने उश्वासने अनुदयें उद्योतनो उदय नेलीये, तेवारें पण अहावीशनो उदय थाय. तिहां पण एज श्राप नांगा जाणवा. एम सर्व मली अहावीशने उदये शोल नांगा थाय. ते वैक्रीय नाषा पर्याप्तियें पर्याप्ताने सुखरनो उदय, ते पूर्वोक्त उश्वास सहित अहावीशमांहे नेसतां उगणत्रीशनो उदय थाय. तिहां पण नांगा थाप अथवा श्वासोश्वास पर्याप्ताने खरने, अनुदयने अने उद्योतने उदयें गणत्रीशनो उदय थाय, तिहां पण नांगा आप जाणवा. एम जंगणत्रीशने उदयें सर्व मली नांगा शोल थाय. तथा सुस्वर सहित गणत्रीशमाहे उद्योतनो उदय नेलतां त्रीशनो उदय थाय. तिहां पण नांगा आप जाणवा. एम सर्व मली वैक्रीयशरीर करतां तिर्यचपंचेंजियने बप्पन्न नांगा थाय. एटले सर्व मली पंचेंजियतिर्यंचने (४ए६२ ) जांगा थाय, अने एकेंजियादिक सर्व तिर्यंचगतिमांहे ( ५०७०) नांगा उपजे. ' हवे मनुष्यने सामान्य एकवीश, बबीश, अहावीश, गणत्रीश अने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय. ए पांचे स्थानकें सहज नांगा पंचेंशियतिर्यंचनी पेरें जाणवा. पण एटबुं विशेष जे तिर्यंचगति अने तिर्यंचानुपूर्वीने स्थानकें मनुष्यगति अने मनुप्यानुपूर्वी कहेवी, तथा उगणत्रीश प्रकृतिनो उदय, उद्योत रहित कहेवो, तेथी जंगपत्रीशने उदयें (५७६ ) नांगा थाय. केम के तिहां उद्योतना नांगा टले तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896