Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 833
________________ GOG सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ चोवीशी अनंतानुबंधीयाना उदय विनानी न पामीयें, जे नणी जेणे पूर्वे सम्यक्त्वे करी अनंतानुबंधीआ विसंयोज्या होय, ते वली कर्मवशें परिणामनी . परावर्तिये मिथ्यात्व पामे तेवारें फरी अनंतानुबंधीआ बांधवा मांडतां मात्र बंधावलिका लगेंज अनंतानुबंधीयानो उदय न पामीयें अने एवी रीतें जे अनंतानुबंधी विसंयोजीने मिथ्यात्वे श्रावे, तेनुं जघन्यथी पण अंतरमुहर्तायु तो अवश्य होय. केमके अनंता - बंधीयाना उदय विना मिथ्यात्वीने काल करवो निषेध्यो बे. ते जीव, तिहां रह्यो मिथ्यात्व प्रत्ययें वली अनंतानुबंधीया बांधे ते उदय श्राव्या पली मरण पामीने जेवारें बीजे स्थानकें जाय, तेने वचाउ अपांतरालगतियें वर्त्ततां तथा उपजती वेलायें ए त्रण योग अनंतानुबंधीना उदय विनाना मिथ्यात्वीने होय. तिहां कार्मणयोग वाटें वर्ततां जीवने होय, तथा औदारिकमिश्र योग तिर्यंच, मनुष्यने उपजती वेलायें होय, अने वैक्रिय मिश्र देव तथा नारकीने उपजती वेलायें होय. ए प्रायिक बोल वे. अन्यथा मिथ्यात्वी तिर्यंच, मनुष्यने वैक्रियशरीर करतां तथा मूकतां पण वैकियमिश्र योग होय, पण ते चूर्णिकारें अहींयां विवदयुं नथी, एम श्रागल पण चूर्णिकारनो मत जावो. ते माटें ए त्रण योगने विषे अनंतानुबंधी थाना उदयरहितनी चार चार चोवीशी नांगानी जे, ते न पामीयें, बाकी चार चार चोवीशीज पामीये. शरवाले वीश चोवीशी मिथ्यात्वे होय. तथा सास्वादने कार्मणयोगें चार, वैक्रियकाययोगें चार, अने औदारिक मिश्रकाययोगें चार, एवं बार चोवीशी होय तथा मिश्रदृष्टिने वैक्रिय काययोगें चार चोवीशी होय. तथा अविरति सम्यक्दृष्टिने मात्र वैक्रिय काययोगेंज आठ चोवीशी होय. तथा देशविरतियें वैक्रिय योगें आपथने वैक्रिय मिश्र योगें श्राउ, एवं शोल चोवीशी थाय तथा प्रमत्त साधुने पण वैक्रिय तथा वैक्रियमिश्रयोगें प्रत्येकें आठ आठ चोवीशी गणतां, शोल चोवीशी थाय तथा अप्रमत्त साधुने वैक्रिय योगें श्राप चोवीशी श्रने वैक्रिय मिश्र तो अप्रमत्तने न होय, केमके चोथा गुणगणाथी उपरांत वैक्रिय तथा वैक्रियमिश्र काययोग लब्धि प्रत्ययिक होय. तेमांहे वैक्रिय मिश्रकाययोग तो वैकियशरीर श्रारंजता तथा मूकता वखतज होय, अने अप्रमत्त साधुने तो विशुकपणाथी लब्धि प्रयुंजवाने अनावें वैक्रियनु आरंज नथी तथा मूकवू पण नथी अने प्रमत्त साधुने वैक्रिय आरंनी पनी विशुद्धिने वशे वैक्रियशरीर बतां अप्रमत्त थाय, ते अपेक्षायें अप्रमत्तने वैक्रियकाययोग होय, ते माटें अप्रमत्तें वैक्रियनी श्राव चोवीशी कही एटले शरवाले वैक्रिययोगें मिथ्यात्वे आठ, साखादने चार, मिझें चार, अविरतियें आठ, देश विरतियें आठ, प्रमत्तें आठ, तथा अप्रमत्तें आठ, एवं अमतालीश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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