Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 844
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ८१ल प्रकृतिनो बंधे करे तिदां बादर प्रत्येक पर्याप्त प्रायोग्य व जांगा बांधे. बाकी बार गान बांधे, केमके सूक्ष्म साधारण अपर्याप्ता मध्ये देवताने उपजवुं नथी ते माटे. श्रावीशने बंधें मिथ्यात्वीने त्रीश छाने एकत्रीश, ए बे उदयस्थानक होय. तिहां श्रीशनुं पंचेंद्रिय तिर्यंच तथा मनुष्यने दोय अने एकत्रीशनुं पंचेंद्रिय तिर्यंचने होय. त्रीशने उदयें पंचेंद्रिय तिर्यंच ने मनुष्यने देवगति प्रायोग्य तथा नरकगति प्रायोयावीशनो बंध होय. बाकी विकलेंद्रियना त्रीश जांगा उदयना न होय. ए बे उदयें यइ (४०४८ ) जांगे अहावीशनो बंध होय. तिहां त्रीशने उदयें बाणु, नेव्याशी, याशी ने ब्याशी, ए चार सत्ता होय, छाने एकत्रीशने उदयें नेव्याशीनी सत्ता न होय, तीर्थंकर सहित नेव्याशीनी सत्ता, तिर्यंचने विषे न पामीयें, तेथी त्रण सत्ता होय, तथा त्रीशने उदयें पण जे वेदकसम्यक्त्व वमी, जिननाम सहित मिथ्यात्वें गयो, तेने नरक प्रायोग्य श्रद्वावीश बांधतां पण नेव्याशीनी सत्ता होय. एम श्रद्वावी - शने बंधें सात सत्तानां स्थानक जाणवां. देवगति प्रायोग्य विना बीजी मनुष्य, तिर्यंचगति प्रायोग्य उगणत्रीशने बंधें वीश, नव विना बीजां सर्व उदय स्थानक होय. तथा बाणु, नेव्याशी, श्रयाशी, बथाशी, एंशी छाने अघोत्तेर, ए व सत्तास्थानक होय. तिहां एकवीराने उदयें व सत्ता होय, कहे . जिननाम बांधी सम्यक्त्व वमीने नरके जाय तेनी वच्चें एकवीशनो उदय होय, तिहां नेव्याशीनी सत्ता होय. तथा बाणु अने अव्याशी, ए वे सत्तास्थानक चतुर्गतिना जीवने विग्रहगतियें एकवीशने उदयें होय, तथा व्याशी अने एंशी, ए बे सत्ता, देव, नारकी विना बीजा जीवोने होय. अने थोत्तेरनी सत्ता देव, नारकी तथा मनुष्य विना बीजा जीवोने होय. एम एकवीशने उदयें व सत्तास्थानक होय तथा चोवीशने उदयें एक नेव्याशी विना बाकीनां पांच सत्तास्थानक, एकेंद्रियने होय. बीजा जीवोने ए उदय न होय तथा पच्चीशने उदयें व सत्तास्थानक होय, तथा बवीशने उदयें नेव्याशीनी सत्ता विना बाकी पांच सत्ता होय, जेनणी नेव्याशीनी सत्ता नारकीने दोय तेने तो बघीशनुं उदयस्थानकज नयी तथा सत्तावीशने उदयें होत्र विना पांच सत्ता होय, ते एकवीशना उदयनी पेरें जाववाँ. जेजणी तेज वाने सत्तावीशनो उदय नथी, बाकी एकेंद्रियादिकने पण पर्याप्तावस्थायें ए उदय होय, तेणे ते मनुष्यद्विक अवश्य बांधे, माटें अहोत्तेरनी सत्ता यहीं ए उदयमां वने उदयें पांच सत्ता होय तेमध्यें व्याशीनी सत्ता विकलेंद्रिय तथा पंचेंद्रिय तिर्यंच मनुष्यनी अपेक्षायें लेवी ने वीजां सत्तास्थान पूर्वली पेरें जावां तथा उगणत्रीशने उदयें पण एज पांच सत्ता पूर्वली पेरें जाववी तथा त्रीश तथा Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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