Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 836
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ११ रिककाययोग, ए नव योग तो दशमा गुणगणा लगें ध्रुव होय माटे नवे योग साथै गुणतां ( ए३) पदवृंद नव योग साथें गुणतां थाय. मिथ्यात्व गुणगणे सातना उदयनी एक चोवीशी नांगानी ले तेमाटें सात एकुं सात तथा थाना उदयनी त्रण चोवीशी डे माटें आपत्रिक चोवीश, एम नव त्रिक सत्तावीश, दश एकुं दश, एम मिथ्यात्वे अडशठ पद थाय तथा तेवार पली सर्व गुणगणे जेटलां जेटलां उदयस्थानक होय, ते एकेका जदये जेटली जेटली नांगानी चोवीशी बे तेटली उदयना यांक साथै गुणीयें, तेवारें पद थाय. __ हवे वैक्रिययोगें मिथ्यात्वें श्रमशठ पद, पाठ चोवीशी ने तेमाटें. अने वैक्रियमिों अनंतानुबंधी सहित चार चोवीशी पामीयें, तेमाटे पाउनो उदय एक नेदे, माटें श्राप एकुंबात अने नवनो उदय बेनेदे, माटे नवे ऽश्रढार अने दशनो उदय एक नेदे,माटे दशएकुं दश,एवं त्रीश पद थयां तेमज औदारिकमिों पण बत्रीश,अने कार्मणे पण त्रीश, शरवाले ( १७६ ) मिथ्यात्व गुणगणे चार योगनां उदयपद थाय. तथा सास्वादने वैक्रिययोगें बत्रीश, औदारिकमिग्रॅ बत्रीश, कार्मणे बत्रीश, मली बन्नु थाय. तथा मिश्रगुणगणे वैक्रिययोगें बत्रीश थाय. एमत्रण गुणगणे मली (३०४) उदय पद थाय. तथा वैक्रिययोगें चोथे गुणगणे शाळ, पांचमे बावन्न, बहे चुम्मालीश अने सातमे चुम्मालीश, शरवाले बसो उदयपद थाय. तेनी साथै आगला त्रण गुणगगाना (३०४ ) नेलतां (५०४) थाय. __ तथा वैक्रियमिश्रयोगें देशविरतियें बावन्न, प्रमत्तें चुम्मालीश, शरवाले बन्नु थया. ते पूर्वोक्त पांचसो चार साथे नेलतां सो उदयपदनी चोवीशी थाय, ए सर्वनो विधि पूर्व उदयनांगामां कह्यो जे तेने चोवीश गुणा करतां ( १४००० ) पद थाय. तथा वैक्रिय मिश्रयोगें सास्वादने नपुंसकवेद न होय, तेलणी बत्रीश षोडशक थाय तथा चोथे गुणगणे वैक्रियमिश्र तथा कार्मणयोगें स्त्रीवेद न होय माटें शाठ शाउ षोडशक होय. एवं (१५२ ) षोमशक थयां तथा प्रमत्तें थने अप्रमत्तें, ए बे गुणगणे थाहारकयोगीने स्त्रीवेद न होय माटे बे वेद श्राश्री प्रत्येक गुणगणे चुम्मालीश चुम्मालीश षोडशक थाय अने प्रमत्ते थाहारकमिश्रयोगीना चुम्मालीश षोडशक लेवां. एवं सर्व मली (२४) षोडशकने शोल गुणां करतां (४५४४) थाय. तेनी साथे पूर्वला (१६७३ ) तथा ( १४४०० ) मेलवता ( एए३७ ) थया. तथा औदारिकमिश्रयोगीने चोथे गुणगणे स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेद न होय, तेजणी तिहां मात्र पुरुषवेदनाज शाउ अष्टक नांगा लेवा, तेना (4) थाय. ते पूर्वला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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