Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 801
________________ ७७६ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ ए त्रीशने जिननाम सहित करता एकत्रीशन उदयस्थानक थाय, ते तीर्थंकर सयोगी केवलीने औदारिककाययोगें वर्त्तताने जाणवो. अहींयां समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति अने सुखरनोज उदय होय, तेमाटें एकज नांगो होय. ते एकत्रीश मांहेथी औदारिक काययोग रुंधाय तेवारें वचनयोगनो पण रोध थाय, माटें वचन, योग रुंधे स्वरना उदय विना त्रीशनो उदय थाय. अहीं पण एक नांगो तीर्थकरने जाणवो. ते मांहेथी वली उश्वास रुंधे थके उंगणत्रीशनो उदय थाय. तिहाँ पण जांगो एक, तीर्थकरनेज जाणवो. - हवे सामान्यकेवलीने पूर्वोक्त त्रीशमांश्री वचनयोग रुंधे थके, उगणत्रीशनो उदय, तिहां ब संस्थान अने बे विहायोगतिना नांगा बार थाय, ते सामान्यमनुष्यमां गणाणां बे, माटें अहिं पृथक् न गणवा. ते मध्ये थी वली उश्वास रुंधे अहावीशनो उदय थाय. अहींथां पण ब संस्थान अने बे विहायोगतिना नांगा बार थाय. ते पण सामान्यमनुष्यमां गएया ने माटें पृथक् न गणवा. तथा १ मनुष्यगति, २ पंचेंजियजाति, ३ त्रस, ४ बादर, ५ पर्याप्त, ६ सुनग, ७ श्रादेय, यशःकीर्ति, अने नवमुं तीर्थकरनामकर्म, ए नवनो उदय तीर्थकर अयोगी केवलीने चरम समयें वर्त्तताने होय. तिहां जांगो एक जाणवो. तथा ते नवमांहेथी एक तीर्थकरनामकर्म विना शेष श्राउ प्रकृतिनो उदय, सामान्य अयोगी केवलीने चरम समय वर्त्तताने होय. तिहां पण नांगो एकज जाणवो. एम केवलीना दश उदा यस्थानकना मली नांगा बाशह थाय. ते मध्ये २०-२१-२७-२५-३०-३१-ए-, ए पाठ स्थानकनो प्रत्येकें एकेक जांगो लेवो. तेमां बे सामान्यकेवलीना उदयस्थानकना बे नांगा थने उ तीर्थंकरना उदय स्थानकना नांगा लेवा. एम आठ लांगा, अहीं गणत्रीमा लेवा, अने शेष चोपन नांगा तो सामान्यमनुष्यना नांगामांहेज अंतत गणाणा , तेमाटे ते पृथक् ग्रहण न करवा. एम सर्व संख्यायें सर्व मनुष्यना नांगा (३६२५) थाय. __ हवे देवताने एकवीश, पच्चीश, सत्तावीश, अहावीश, गणत्रीश, अने त्रीश, ए ब उदयस्थानक होय. तिहां देवधिक, ३ पंचेंजियजाति, ४ त्रस, ५ बादर, ६ पर्याप्त, सुन्नग पुर्नगमांदेली एक, ७ श्रादेय अनादेयमांदेली एक, ए यश श्रयशमांहेली एक, अने बार ध्रुवोदयी, ए एकवीश- उदयस्थानक नवनी अपांतरालगतियें वर्तताने होय. तिहां सुनग, पुर्नग, आदेय, अनादेय अने यश, अयश साथे नांगा श्राप होय; अहिं दो ग्य, अनादेय;अने श्रयशनो उदय, ते पिशाचादिकने जाणवो. पड़ी तेहीज शरीरस्थ थया पड़ी ते एकवीश प्रकृतिमाहे वैक्रियटिक, उपघात, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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