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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ श्रायुबंधकालावस्थाना जाणवा. तथा उत्तरावस्थायें बंधन्यशून्य काले तिर्यगायुनो उदय अने देवायु तथा तिर्यगायुनी सत्ता, चोथो तिर्यगायुनो उदय श्रने नरकायु तथा तिर्यगायुनी सत्ता, ए चार नांगा तिर्यंचना, तेवाज चार नांगा मनुष्यमांहेला, एवं श्राव लांगा टले, तेवारें शेष दश जांगा रहे, तिहां तिर्यंचगतिमध्ये एक आयुबंधथी पूर्वावस्थानो तथा बे बंध कालावस्थाना अने एक तिर्यगायुनो उदय, तथा बे तिर्यगायुनी सत्ता, बीजो तिर्यगायुनो उदय, अने तिर्यग् तथा मनुष्यायुनी सत्ता, ए बे उत्तरावस्थायें वंधशून्य कालें होय. एवं पांच तिर्यंचगतिना, तेमज पांच मनुष्यगतिमाहेला, एवं दश जांगा श्रायुना संज्ञी अपर्याप्तामांहे लाने.
तथा पत्तश्रमण के मनरहित एटले पर्याप्ता असंझी पंचेंडियने विषे नवगं के श्रायुःकर्मना नव जांगा जे पूर्वे तिर्यंचगतिमध्ये सामान्य कह्या, ते अहीश्रां पण सेवा, केमके देव श्रने नारकी तो असन्नीया होयज नहीं, अने मनुष्य पण असन्नि पर्याप्तो न होय, मात्र तिर्यचज असन्नि पर्याप्तो होय, तेने चारे गतिना आयुनो बंध होय, माटें एने तिर्यंचगति मांदेला नवे नांगा होय. : ए रीते एक संझी पंचेंजिय पर्याप्तो, बीजो संझी पंचेंजिय अपर्याप्तो, त्रीजो असंझी पंचेंजिय पर्याप्तो, ए त्रण जीवनेद टाली, सेसेसु के शेष रह्या जे अगीबार जीवनेद, तेने विषे प्रत्येकें प्रत्येकें पणगंचआउस्स के आयुःकर्मना पांच पांच नांगा होय. ए श्रगीबारे जीवस्थानकें तिर्यंच होय, अने ते देव तथा नारकीर्नु श्रायु न बांधे, तेमाटें श्रायुबंध कालथी पूर्वे एक नांगो तथा श्रायुबंध कालें बे गतिना बे लांग अने आयु. बंध काल पड़ी बे लांगा, एवं पांच नांगा होय. एमां असंझी पंचेंद्रिय संमूर्छिम अपर्याता मनुष्य पण होय, तेवारें पांच तिर्यंचना अने पांच तेना पण जांगा उपजे. एवं दश नांगा उपजे पण ते अहीं सूत्रकारें कह्या नथी, ते शुं जाणीयें शा हेतुयें विवदा करी नहीं ? ते विचार, ॥ इति ॥ ३५ ॥ ॥अथ जीवस्थानेषु मोहनीयकर्माह॥हवे चौद जीवस्थानकने विषमोहनीयकर्मना बंध,
__उदय अने सत्तानां स्थानकनो संवेध विवरीने कहे . ॥ असु पंचसु एगे, एग उगं दसय मोह बंध गए॥ तिग चन नव उदय गए, तिग तिग पन्नरस संतंमि॥४०॥ अर्थ-अहसुपंचसुएगे के श्राप जीवस्थानकने विषे तथा पांच जीवस्थानकने विषे अने एक जीवस्थानकने विषे अनुक्रमें एगपुगंदसय के एक, बे अने दश, मोहबंधगए के० मोहनीयप्रकृतिनां बंधस्थानक होय तथा अनुक्रमें ते एकेका बंध.
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