Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
G न्य
चोवीशी जांगानी थाय तथा अनियट्टिबायरेपुरा के० वली निवृत्तिबादर पठाणाने विषे shayariसा के० एक अथवा बे उदयस्थानक होय. तिदां संज्जलना चार कषाय मांहेलो एक कषायाने त्रण वेदमांहेलो एक वेद, ए बे प्रकृतिनुं स्थानक होय. तिहां चार कषायने त्रण वेदना विकल्पें गुणतां बार जांगा थाय. तेवार पी वेदनो उदय टले थके एकना उदयनुं स्थानक रहे, ते चतुर्विध, त्रिविध, द्विविधा एकविध बंधने विषे पामीयें. तिहां यद्यपि पूर्वे चतुर्विधबंधें चार, त्रिवि - धबंधे त्रण, द्विविधबंधें बे ने एकविधबंधें एक, एवं दश उदय जांगा कह्या बे. तो पण हीं सामान्य विवक्षायें चार, त्रण, बे छाने एक, ए चार बंधस्थानकनी अपेक्षायें एकेक जांगो लेखवतां चार जांगा विवक्षीयें, एटले नवमे गुणठाणे शोल जांगा होय.
एगं सुदुम सरागो, वेएइ जंगाणं च पमाणं, पुबुद्दि
वेगा जवे सेसा ॥ नाय ॥ ५१ ॥
- एगंदुमसरागो के० सूक्ष्मसंपराय गुणठाणे एक की टिकृत संज्वलनो लोन वेश के० वेदे, ते माटें एकतुं उदयस्थानक होय. तेनो एक जांगो होय, एटले दशमे गुणठाणे बंध विना एक संज्वलना लोजनो उदय होय. अने वेगावेसे के० शेष उपरला उपशांतमोहादिक चार गुणठाणे मोहोदय नथी, माटें अवेदक होय, केमके तिहां मोहनीयनो उदय न होय. अहीं मिथ्यात्वादिक गुणठाणे उदयस्थानकना जंगाणंचपमाणं के० जांगानुं प्रमाण अने जांगानुं उपजावतुं ते, पुहुदिmarna ho पूर्वै मोहनीयना उदयस्थानक विचारवाने अवसरें देखाड्यां तेमज पूर्वोक्त प्रकारें जाणवां ॥ इति ॥ ५१ ॥
|| हवे ए दशादिक उदयस्थानकें गुणठाणा श्राश्रयी जांगानी संख्या कड़े बे. ॥ इक्कग मिक्कियारि, कारस इक्कार सेव नव तिन्नि ॥
एए चवीस गया, बारडुगं पंच इक्कंमि ॥ ५२ ॥
अर्थ-दशने उदयें इक्कग के० एक चोवीशी नांगानी मिथ्यात्व गुणठाएँ जाणवी, म ए दशनो उदय, मिथ्यात्वेंज बे माटें तथा नवने उदयें बम के० ब चोवीशी जांगानी, तेमध्यें मिथ्यात्वें त्रण, सास्वादनें एक, मिलें एक अने अविरतियें एक. तथा
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वने उदयें इक्कियार के० अगीआर चोवीशी. ते मध्यें मिथ्यात्वें त्रण, सास्वादने बे, मि वे, विरतियें त्रण छाने देशविर तियें एक. तथा सातने उदयें पण इकारस ho गीार चोवीशी, तेमध्यें पहेले, बीजे अनेत्री जे गुणठाणे एकेकी, चोथे अने
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