Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 811
________________ ១០ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ उगणत्रीश श्रने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय, तथा देशविरति मनुष्यने वैक्रिय करतां द्योतनो उदय न होय, तेमाटें त्रीशना उदय विना बीजां चार उदयस्थानक होग, तिहां देवगति प्रायोग्य तीर्थकरनामकर्म सहित उगणत्रीश बांधतां व्याणु तथा नेव्याशी, ए बे सत्तानां स्थानक पांचं उदयस्थानकें होय. तथा थाहारक साधुने देवगति प्रायोग्य उगणत्रीश प्रकृति बांधतां एकज व्याणुर्नु सत्तास्थानक होय. एम सामान्यपणे गणत्रीशने बंधे नव उदयें करी नांगा चोपन शरवाले थाय. . तथा त्रीशना बंधस्थानके जेम तिर्यग्गति प्रायोग्य उंगणत्रीशनो बंध बांधतां एकेजिय, विकलें जिय, तिर्यंच, पंचेंजिय मनुष्य, देव अने नारकीने जेम उदयस्थानक कह्यां, तेम उद्योत सहित तिर्यग्गति प्रायोग्य त्रीशने बंधे एकेंजियादिकने पण उदय सत्तास्थानकनो संवेध नाववो. तथा मनुष्यगति प्रायोग्य तीर्थकरनामकर्म सहित त्रीशनो बंध करतां देवता अने नारकीने जे विशेष बे, ते कहीयें बैयें. देवताने एकवीशने उदयें वर्त्ततां व्याणु अने नेव्याशी, ए बे सत्तास्थानक होय, तथा नारकीने एकवीशने उदयें वर्त्ततां मनुष्यगति प्रायोग्य त्रीश प्रकृति बांधतां एकज नेव्याशी प्रकृतिनुं सत्तास्थानक होय, परंतु नारकीने त्र्याणुनी सत्ता न होय, जे जणी तीर्थकरनाम तथा थाहारक. चतुष्क, ए बेहुनी सत्ता, नारकीने नेली न होय. चूर्णिकारें कडं ले के "जस्स तिथ्थगराहा, रगाणि जुगवंसंति, सोनिरश्एसु न उववद्यई तथा एमज पच्चीश, सत्तावीश, थहावीश अने उंगणत्रीश, ए चार उदयस्थानकें पण देवताने ए बेबे सत्तास्थानक होय, अने नारकीने त्रीशन उदयस्थानक न होय, जे जणी उद्योत नेलतां त्रीशनुं उदयस्थानक थाय. ते उद्योतनो उदय तो नारकीने नथी एम सामान्यपणे त्रीशने बंधे, एकवीशने उदयें सात, चोवीशने उदयें पांच, पच्चीशने उदयें सात, बबीशने उदयें पांच, सत्तावीशने उदयें ब, अहावीशने जदयें ब, उगणत्रीशने जदयें उ, त्रीशने उदय अने एकत्रीशने जदयें चार, एम सर्व मली त्रीशने बंधे नव उदयस्थानकें थश्ने नांगा बावन थाय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३३ ॥ एगेग मेगतीसे, एगे एगुदय अह संतंमि ॥ नवरय बंधो दस दस, वेयग संतंमि गणाणि ॥ ३४ ॥ अर्थः-तथा एगेगमेगतीसे के एकत्रीशने बंधे एगेग एटले एकज उदयस्थानक तथा एकज सत्तास्थानक पण होय. ते आवी रीतें के, देवगति प्रायोग्य जिननाम तथा थाहारकछिक सहित एकत्रीशनुं बंधस्थानक अप्रमत्त तथा अपूर्वकरण गुणगणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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