Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 799
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ त्रीशने उदय पण ( ११५५ ) नांगाज थाय, पण अधीक न थाय, जे लणी वैक्रीय तथा आहारक शरीर करतां मात्र साधुने उद्योतनो उदय होय पण बीजामनुष्यने, न होय. एम शरवाले सामान्य मनुष्यने (१६०२ ) नांगा होय. तथा मनुष्यने वैक्रियशरीर करतां पञ्चीश, सत्तावीश, श्रहावीश, उगणत्रीश अने त्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां प्रथम १ मनुष्यगति, २ उपघात, ३ पंचेंजियजाति, ५ वैक्रीयधिक, ६ समचतुरस्त्रसंस्थान, १० त्रसचतुष्क, ११ सौलाग्य अथवा दौ ग्य, १५ आदेय अथवा अनादेय, १३ यशःकीर्ति अथवा अयशःकीर्ति, अने बार ध्रुवोदयी, एवं पच्चीशनो उदय होय. तिहां पूर्वे जे वैक्रियतिथंचना नांगा कह्या, तेनी पेरें आठ नांगा जाणवा. पड़ी ते वैक्रीयशरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने पराघात अने प्रशस्तगतिने उदय सत्तावीशनो उदय होय, तिहां पण एज श्राव नांगा जाणवा. तेवार पड़ी तेने श्वासोश्वास पर्याप्ति पूरी थये थके सत्तावीशना उदयमांडे उश्वासनो उदय नेलतां अहावीशने उदय पण आउ नांगा जाणवा, अथवा साधुने वैक्रीय करतां शरीर पर्याप्ति पूरी कस्या पड़ी श्वासोश्वासना उदय विना उद्योतनो उदय नेले थके अहावीशनो उदय होय. अहींयां एकज नांगो थाय. जे नणी साधुने दौर्जाग्य, अनादेय, अने अयशःकीर्त्तिनो उदय न होय. एम अहावीशने उदयें सर्व मली नव नांगा थाय. ते पड़ी श्वासोश्वास सहित अहावीशमध्ये नाषा पर्याप्तियें पर्याप्ता थया पड़ी सुखरनो उदय नेलतां जंगणत्रीशनो उदय थाय. अहीं पण पूर्वली पेरें नांगा आव जाणवा, अथवा साधुने स्वरनो उदय थया विना उद्योतनो उदय नेलतां जंगपत्रीशने उदय नांगो एक थाय. सर्व मली उगणत्रीशने उदयें नव जांगा थाय. __ तथा सुखरसहित उगणत्रीशना उदयमांहे उद्योतनो उदय नेलतां त्रीशनुं उदयस्थानक थाय. अहीं पण पूर्ववत् एकज नांगो साधुने जाणवो, एम सर्व संख्यायें वैक्रीयमनुष्यना पांच उयदस्थानकें थश्ने पांत्रीश जांगा थाय.. तथा संयतने आहारकशरीर करतां पण वैक्रियमनुष्यने कह्यां तेहीज पांच उदयस्थानक जाणवां. पण एटबुं विशेष जे वैक्रीयछिकने गमें आहारकटिक कहे, तथा अहीं केवल प्रशस्त पदज होय, एटले संयतने पुर्नग, अनादेय ने अयशनो उदय न होय, तेमाटें पञ्चीशने उदयें एकज नांगोजाणवो. तेवार पड़ी शरीर पर्याप्ताने पराघात अने प्रशस्त विहायोगति नेले थके सत्तावीशनो उदय थाय. तिहां पण पूर्वली पेरें एकज नांगो जाणवो. ते पनी प्राणपान पर्याप्ताने उश्वासनो उदय नेले थके अहा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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