Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 802
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ I99 प्रत्येक, समचतुरस्रसंस्थान, ए पांच प्रकृति नेलीयें श्रने वैक्रियानुपूर्वी काढीयें, तेवारें पच्चीशन उदयस्थानक थाय. तिहां पण तेमज श्राप जांगा जाणवा. ते पनी शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने पराघात तथा प्रशस्त विहायोगति, एबे प्रकृति नेले थके सत्तावीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक थाय. तिहां पण आउ नांगा उपजे. अहिं देवताने अशुजविहायोगतिनो उदय न होय, तेथी जांगा वधे नहिं. ते पडी प्राणपान पर्याप्ताने उश्वासनो उदय नेले थके अहावीश- उदयस्थानक थाय. तिहां पण नांगा आठ पूर्ववत् जाणवा. अथवा शरीर पर्याप्ताने उश्वासने अनुदयें अने उद्योतने उदयें पण अहावीशनो उदय थाय. तिहां पण नांगा श्राप जाणवा. एम अहावाशना उदय सर्वे मल। शोल नांगा होय. ते पड़ी नाषापर्याप्तियें पर्याप्ताने सुखरनो उदय नेले थके गणत्रीशनो उदय थाय, तिहां पण नांगा श्राप थाय, देवताने दुःखरनो उदय न होय, अथवा श्वासोश्वास पर्याप्तियें पर्याप्ताने सुखरने अनुदयें अने उद्योतने उदय पण उगणत्रीशनो उदय होय. तिहां पण नांगा श्राप जाणवा. जे नणी उत्तरवैक्रिय करतां देवताने पण उद्योतनो उदय पामीये. सर्व मली उंगणत्रीश उदये शोल नांगा उपजे. ते पड़ी नाषा पर्याप्तिये पर्याप्ताने सुस्वर सहित उगणत्रीशमाहे उद्यातनो उदय नेले थके त्रीशनुं उदयस्थानक होय. श्रहीं पण नांगा था पूर्ववत् जाणवा. एम देवताने ब उदयस्थानकें थश्ने सर्व मली नांगा चोशक उपजे. हवे नारकीने एकवीश, पञ्चीश, सत्तावीश, अहावीश अने उगणत्रीश, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां २ नरकटिक, ३ पंचेंजियजाति, ४ त्रस, ५ बादर, ६ पर्याप्त, ७ उर्जग, ७ अनादेय, ए अयशःकीर्ति, तथा बार ध्रुवोदयी मलीने एकवीशनोज उदय, विग्रहगतियें वर्त्ततां होय. अहीं नांगो एक होय, जे जणी नारकीने परावर्तमान प्रकृतिमांहेली अशुन प्रकृतिनोज उदय होय, तेथी विकल्प न होय. ... पड़ी ते एकवीशमाहे २ वैक्रीयहिक, ३ डैमसंस्थान, ४ उपघात, ५ प्रत्येक, ए पांचनो उदय नेलीयें अने नरकानुपूर्वानो उदय टालीयें, तेवारें पच्चीश प्रकृतिनो उदय नरकमांहे अवतस्या पली शरीरस्थने जाणवो. तिहां पण नांगो एक थाय. ते पली शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने पराघात तथा अशुनखगति, ए बेनो उदय नेलीयें, तेवारें सत्तावीशना उदयें पण नांगो एक जाणवो. ते पनी प्राणपान पर्याप्तियें पर्याताने श्वासोश्वासनो उदय नेले अहावीशना उदयें पण नांगो एकज थाय. ते पनी जाषापर्याप्तियें पर्याप्ताने पुःखरनो उदय नेले थके, उंगणत्रीशना उदयें पण नांगो ९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896