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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. ' अर्थ-जोयणसहिपिटुत्ता के ते कुंड साठ योजन पहोला . वली केवा जे? सवाय प्पिहुलवेशतिवारा के० सवा ब योजन पहोलां वेदिकानां त्रण बारणां डे जे कुंमने विषे. एएकुंमा के ए पहेला कह्या जे कुंड ते दसुंड के दश योजन उंडा जे. एवं के० ए प्रकारे अन्नेवि के बीजा पण कुंड डे. पण ते के तेहनु नवरं के एटबुं विशेष ले ते कहे . ॥ ५३॥
एसिं विचर तिगं ॥ पमुच्च समज्गुण चगुण गुणा ॥ - चनसहि सोल चउदो॥ कुंडा सवेवि इद नवई ॥५४॥
अर्थ- एसिंविधारतिगं के० ए कुंडना त्रण विस्तार पमुच्च के श्राश्रीने ते त्रण विस्तार किया ? कुंमनुं पहोलपणुं श्रने छीपनुं पहोलपणुं तथा वेदिकानुं पहोलपणुं ए त्रण विस्तार ते महाविदेह क्षेत्रमा बत्रीश विजयनी नदीना जे चासठ कुंड, तेमांहे जे छीप-तेहनी वेदीका, तेहनो विस्तार ते सम के नरत अने ऐरवतना कुं. म सरखो . ते केम? विदेहना विजयमांहे चसहि के जे चोस कुंड डे, ते साठ योजन पहोला . ते मध्ये छीपाठ योजन , त्यहां वेदिकानां बारणांनो विस्तार सवाब योजन जाणवो. अने हेमवंत देवनी बे नदी, ऐरण्यवत क्षेत्रनी बे नदी, वली बत्रीश विजयनी बार अंतर नदी-एम सोल नदीना जे सोल के सोल कुंड, तेहना द्विप, तेहनां वेदिका घार, तेहनो विस्तार पहेलानाथी उगुण के बमणो जाएवो. ते केम ? तो के-पहेला कुंमनो विस्तार साठ योजन बे, तेने बमणा करीएं तो एकसो वीश योजन थाय; तो ए सोल नदीना कुंड एकसो वीस योजन पहोला बे, पहेलाना हीपाठ योजन पहोला बे, ते बमणा करतां सोल थाय तो ते कुंमनाहीप सोल योजन पहोला . अने वेदिका घारनो विस्तार पहेलां सवा न योजन कह्यो बे, तेथी बमणो करिएं तेवारे साढाबार योजन थाय, तो सोल कुं मना द्विपनी वेदीकाना बारणानो विस्तार पण साढाबार योजन . वली हरिवर्षदेत्रनी बे नदी अने रम्यक्नी बे नदी-ए चार नदीना चल के चार कुंड, तेहना त्रण विस्तार पमुच्च के आश्रीने चउगुण के चोगुणो जाणवो.ते केम?ता के पहेला कुंड साठ योजन पहाला , तो साउने चोगुणा करतां बसें चालीश योजन ए कुंडनो विस्तार .श्रावने चोगणा करतांबत्रीश योजन छीपनो विस्तार . सवाउने चोगुणा करतां पचीश योजन एटलो वेदिका हारनो विस्तार बे. तथा महाविदेहनी बे नदीना दो के बे कुंड, तेहना त्रण विस्तारने पमुच्च के श्राश्रीने आग्गुणो जाणवो. ते कहे . पहेला कुंमनो विस्तार साठ योजन , ते साउने जेवारे श्रावगुणा करीएं तेवारे चार एसी योजन कुंमनो
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