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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ वली तेहिज खंडना पूर्वोक्त रीतें असंख्याता खंड कल्पी ते कल्पना खंम सो सो वर्षे एकेक कहामतां जेवारे ते पक्ष्य निर्लेप थाय, तेवारे सूदम अद्धापक्ष्योपम असंख्याता वर्षनी कोडी प्रमाण थाय. तेवा दश कोडाकोडी सूक्ष्म श्रद्धापट्योपमें एक सूदम अझा सागरोपम थाय, तेवा वली दश कोडाकोडी सागरोपमें एक अवसर्पिणी काल थाय, अने वली एक उत्सर्पिणी काल पण थाय, ए अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणीना बेहुकाल मली वीश कोमाकोमी सागरोपमें एक कालचक्र थाय, ए सूदम अझापढ्योपम अने सागरोपमें करी देवता, नारकी, मनुष्य अने तिर्यचनुं बाउ के श्रायुनुं मान तथा कर्म स्थितिमान तथा काय स्थितिमान तथा नव. स्थितिनुं कालमानादिक मवीयें, ए चोथु सूदम अमापस्योपम कडं, एटले ए सूक्ष्म अहासागरोपमना अनंता पुजल परावर्ते अतीत श्रद्धा तथा अनंता पुजलपरावर्त्त अनागत श्रद्धा एटले अनागत अमानी अनंतता बे, अने अतीत अद्धानी श्रादि नथी, तेथी बेहुने समानपणुं . अन्य आचार्य वली एम कहे डे, के अतीत असाथकी अनागत अहा अनंतगुणा बे. तेनी नावना एम डे, के जो पण समयादिकें करी अनागत असाहीयमान , तो पण अनागत अमानो दय नथी थतो ते माटें अतीत अझा थकी अनागत अफा अनंतगुणी .
सांप्रत बे प्रकारना क्षेत्र पट्योपमनुं निरूपण करीयें बैयें. ते प्रर्वोक्त वालाग्रखंमें करी जस्यो जे पट्य ते मध्ये कल्पना करेला वाला स्पा जे आकाशप्रदेश तेमांहेथी एकेक आकाश प्रदेश समए के समय समय कहोडतांजेवारे सर्व वालाग्र स्पष्ट
आकाश निर्लेप थाय, तेवारे असंख्याती उत्सर्पिणी थने अवसर्पिणी कालप्रमाण एक बादर क्षेत्र पख्योपम थाय.
ते पल्यना सूक्ष्म एकेका वालाग्रने स्पा श्राकाशप्रदेश तथा अणस्पा एवा समस्त आकाशप्रदेशने समय समय कहामतां जेवारे ते पक्ष्य निर्लेप थाय, तेवारें पूर्वोक्त बादर क्षेत्र पस्योपमना कालमान थकी असंख्यातगुणो असंख्याती उत्सपिणी अने अवसर्पिणी प्रमाण सूक्ष्म देत्र पट्योपमनुं कालमान थाय, तेवा दश कोकाकोडी सूक्ष्म देत्र पस्योपमें एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम थाय, एणे करी तसायपरिमाणं के प्रसादिक जीवनुं परिमाण करवू, एटले दृष्टिवादने विषे अव्य प्रमाण चिंतवीयें तथा पृथिव्यादिक एकेंजिय त्रसांत जीवन परिमाण करीयें तेने विषे एनुं प्रयोजन बे. अहीं शिष्य पूजे जे के, जो स्पष्ट, अस्पष्ट, ननःप्रदेश अहीं सूदम क्षेत्र पट्योपमें करीने ग्रहण करीयें बैयें, तो वालाग्रोनुं शुं प्रयोजन ? यथोक्त पक्ष्यांतरगत नजःप्रदेशापहार मात्रश्रीज सामान्यपणे कहेवु उचित . तत्र गुरु कहे , के ए
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