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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. लीश पर्वत जाणवा. श्य के ए नरखितेसयलगिरिणो के मनुष्य क्षेत्रमांहे सर्व पवेत जाणवा. ॥ २५३ ॥
॥हवे सर्व पर्वतनी एकत्र संख्या कहे .॥ तेरद सय सगवला ॥ ते पणमेरूहि विरहिया सवे ॥
उस्से दपायकंदो॥ माणुससेलो वि एमेव ॥ ३५४ ॥ अर्थ- तेरसो ने सत्तावन पर्वत सर्व मलीने मनुष्य क्षेत्रमांहे जाणवा, ते पण मेरूहिविरहिया के ते पांच मेरुपर्वतविना सवे के सर्व पर्वतो जस्सेहपायकंदो के जंच्चपणाना चोथे जागे कंद एटले नूमीमांहे जाणवा, अने माणुससेलोवि के मानुष्योत्तर पर्वत, ते पण एमेव के एज रीते एटले उंचपणाने चोथे नागे नूमीमांहे .
॥ पुष्कराई छीपना श्रादि, मध्य अने अंत्यना त्रण परिधि कहे . ॥
धुवरासीसु तिलका ॥ पण परम सदस्स सय चुलसीया॥
मिलिया हवंति कमसो॥ परिदितिगं पुस्कर धस्स ॥२५॥ अर्थ- प्रथम जे धुवरासीसु के ध्रुवांकनी श्रेणी कही , तेमांहे त्रण लाख पंचावन्न हजार बसें ने चोराशी एटला योजन जेवारे त्रणे परिधिमांहे मिलिया के मेलवीएं, तेवारे कमसो के अनुक्रमे पुरकरफरस के० पुष्कराईनी परिहितिगं के० त्रण परिधि, हवंति के होय, ते संख्या यंत्र थकी जाणवी. उक्तंच ॥ अट्ठाश्दीव उसमुदरूव ॥तप्परिहिं जोयणिगकोमी ॥ बायाललरकतीसं ॥ सहसा दोसयश्गुणवन्ना ॥१॥ सोलसकोमीलरका ॥ नवको डिसयातिकोडिगलका ॥ पणवीससहस्सासे ॥गणियपयंमुणसुकरणेहिं ॥ २५५ ॥
॥ हवे मनुष्यदेत्र बाहेर जे पदार्थ न होय ते कहे . ॥ नश्दघण घणियागणि ॥ जिणाश्नरजम्ममरणकालाई॥
पणयाललरकजोयण ॥ नरखितं मुत्तु नो पुरां ॥ २५६ ॥ अर्थ- नदी, अह, घन के मेघ, घणिय के मेघनो गर्जाव, अगणि के बादर अग्नि काय, जिणा के तिर्थकर, आदिशब्दथकी बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ति ने बीजा पण नर के सामान्य मनुष्य तेना जम्ममरण के जन्म अने मरण तथा कालाई के मुहर्त, प्रहर, दिवस प्रमुख आदिशब्द थकी चंज सूर्यना परिवेष विजली, चय, अपचय, अने उपराग एटला पदार्थ पीस्तालीस लाख योजन प्रमाण मनुष्यदेत्र मांदे होय. पण नरखित मुत्तु के नरक्षेत्र मूकीने नोपरां के बाहेर न होय, एवं नर
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