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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४
४G५ - अर्थ- थाहारेश्ररथा के० आहारक श्रने इतर ते अणाहारक ए बे जेद आहा. रक मार्गणाना, ए चउदमी मार्गणा. हवे वाशठ मार्गणायें चौद जीवनेद कहे . सुर० के० देवगति, निरय के नरकगति, त्रीजु विनंग के० विनंग ज्ञान, चो, म के मतिज्ञान, पांचमुं सु के श्रुतझान, हिगे के अवधिज्ञान अने अवधिदर्शन, एवं सात. सम्मत्ततिगे के सम्यक्त्वनुं त्रिक, एवं दश. अने पह्मा के श्रगी. श्रारमी पद्मलेश्या, बारमी सुका के शुक्ल लेश्या, तेरमी सन्निसु के० सन्नीथा, ए तेर मार्गणायें सन्निगं के संझी पंचेंजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, ए बेजेद जीवना होय. ॥ इत्यदरार्थः ॥ १७ ॥ ___ चौदमी आहारकमार्गणा, त्यां प्रथम श्राहार त्रण प्रकारना . एक उजार, अप
र्याप्तावस्थायें होय तथा बीजो लोमाहार अने त्रीजो प्रदेपाहार, ए बे थाहार पर्याप्तावस्थायें होय, ए त्रणे आहारें करी कुधोपशम हेतु शरीरादिक पुजल श्राहारे, तेने आहारक कहीये. तेथी इतर के बीजा अनाहारक जाणवा. जे कार्मणकाययोगी विग्रहगति समापन्न जीव तथा अयोगी केवली इत्यादिक अणाहारक जीव जाणवा. एम विचारतां वे ने सर्व जीव जाणवा, ए चौदमी आहारकमार्गणा कही. ए रीतें मार्गणाना उत्तर नेद बाश: कह्या. - हवे बाशठ मार्गणाधारे चौद जीवनेद विचारे . देवगति अने नरकगति, ए बे गतिमार्गणामध्ये संझी पंचेंजिय अने पर्याप्तो करण अपर्याप्तो लेवो केमके लब्धि अपर्याप्तो देव श्रने नारकी न होय माटें.
त्रीजा विजंग ज्ञाने अपर्याप्तावस्थायें विनंग ज्ञानी होय. ते अपेक्षायें खेतुं तथा पंचसंग्रहमांहे विनंगें एकज जीवनेद मात्र सन्निपर्याप्तोनोज कह्यो बे ते असंझीया माहेथी आव्यो जे देवता, अने नारकी तेने अपयोप्तावस्थायें विनंगशान न होय. तेथी ते अपेक्षायें एकज नेद लीधो ले. ए विशेष बे.
मतिज्ञान, श्रुतझान, अवधिज्ञान, ए त्रण ज्ञान अने दर्शनमार्गणामांदे एक अवधिदर्शन ए चार मार्गणाधार संझी पंचेंजिय करण अपार्याप्तो जीव त्रण ज्ञान सहित सम्यकदृष्टि अवतरे, ते अपेक्षायें अपर्याप्ता लीधा, तथा बीजा संझी पर्याप्ता सम्यक दृष्टि जीवने पण होय, एटले बे जीवनेद होय.
त्रण सम्यक्त्वे पण ए बे जीवनेद जाणवा. त्यां बझायु सात प्रकृति मोहनी खपावी, चार गतिमाहे उपजे, त्यां अपर्याप्तावस्थायें दायिक सम्यक्त्व होय. ते श्रपेदायें एक संजीआ अपर्याप्ता लेवा तथा उपशमश्रेणिये उपशम सम्यकदृष्टि पण
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