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कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ . ४ तथा जमेला आहारने पचाववानुं हेतु तथा तेजोलेश्या निर्गमहेतु, ते तैजसशरीर जाणवं, ते जे कर्मना उदयथीलहीयें, ते कर्मप्रकृतिनुं नाम तैजसशरीर जाणवं. ___५ जे कर्मदल, जीव प्रदेशसाथे कीर नीरनी पेरे मली रह्यां ते कार्मण शरीर सर्व शरीरनुं बीजनूत, जे कर्मना उदयथी कर्मवर्गणादल लेइ कर्मपणे परिणमावे, ते पांचमं कार्मण शरीर जाणवं. तथा (पागंतरे) टीकाकारे कहेलु डे जे कर्म परमाणुने विषे निष्पन्न थयु होय तेने कार्मिक एक कार्मण शरीर कहीये. कर्म परमाणुज आत्मप्रदेश सहित दीर नीरनी पेठे अन्योऽन्य अनुगत थाय बे ते कार्मण शरीर कदेवाय . कर्मनो विकार, तेज कार्मण एवी व्युत्पत्ति ॥ इति समुच्चयार्थः॥३३॥ ॥ हवे ए पूर्वोक्त औदारिकादिक शरीरे अंगोपांग होय, ते माटे
अंगोपांग कहे . ॥ बाहु रु पिकि सिर उर, उअरंग उवंग अंगुलीपमुहा ॥
सेसा अंगोवंगा, पढम तणुतिगस्सुवंगाणि ॥ ३४॥ अर्थ-तेमां प्रथम श्राप अंगनां नाम कहे जे. बाहू के बाहुबे एटले जुजा बे, अरु के बे जंघा साथल, एवं चार, पिठि के पुंठि वांसो, एवं पांच, सिर के मस्तक, एवं ब, उर के हृदय हैयुं, एवं सात, उधरंग के उदर एटले पेट, एवं श्राउ, ए श्राठे अंग कहीयें. उवंगअंगुलीपमुहा के उपांग ते अंगुली प्रमुख जाणवां. एटले ए अंगने लाग्या जेम हाथ, तेम हाथने लागी अंगुली, जंघाने लाग्या ढींचण प्रमुख तेने उपांग, एवी संज्ञा कहीयें; सेसाअंगोवंगा के ए थकी शेष थाकता एवा जे आंगलीना पर्व, रेखा प्रमुख ते अंगोपांग जाणवा. ए अंगोपांग पढमतणुतिस्सुवंगाणि के० पहेला त्रण शरीर जे औदारिक, वैक्रिय अने थाहारक, एने होय. त्यां औदारिक शरीरें औदारिक अंगोपांग, अने वैक्रियशरीरे वै क्रियशंगोपांग, श्राहारकशरीरे थाहारक अंगोपांग, एम त्रण जाणवां. ए अंग अने उपांग थकी शेष रह्या जे अंगुलीना विसुथा, हाथ पगनी रेखा, नख, केश, रोमादिक, तेने अंगोपांग कहीयें. एम एक अंग, बीजां उपांग अने त्रीजां अंगोपांग. ए पण त्रण कहीयें. पढमतणु एटले जे कर्मना उदयथी
औदारिकादिक शरीरपणे परिणम्या पण ते पुजल एहवे अंगोपांगने श्राकारपणे परिणमे, हस्तादिक आकार नीपजे, ते अंगोपांगकर्म अथवा एत्रण शरीरें होय अने तैजस तथा कार्मण ए बे शरीर जीवप्रदेशनी साथें वीर नीरनी पेरें मली रह्या ले तेहy कशुं संस्थान नथी, तेथी तेनां अंगोपांग न होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३४ ॥.
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