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संग्रहणीसूत्र. रियहितादेवी ॥७॥ ते सर्व सणंकुमारा के सनत्कुमारवासी देवताने उपलोग योग्य जाणवी. पण ते देवी तेथी उपरना देवलोकना देवताने वांछे नही. एमज फरी दश पक्ष्योपमधी उपरांत एक समय, बे समय, त्रण समय, श्रादे दश्ने दसगेहिं के दश पस्योपमसुधीनी बीजी वृद्धि करीएं, एटले वीश पख्योपमनुं आयुष्य ब्रह्मदेवलोकना देवताने नोगयोग्य देवीनुं जाणवू. ___ वली तेवारपनी ए एमज समय श्रादे देश्ने दश पक्ष्योपमनी वृद्धि सुधी एटले त्रीशपट्योपमना श्रायुष्यवाली देवी ते शुक्रदेवलोकना देवताने जोगयोग्य जाणवी. तेवार पली वली समयादि वृद्धिए चालीश पत्योपमना आयुष्यवाली देवी ते आणतदेवलोकवासी देवताने जोगयोग्य होय. वली तेवारपढी समयादि वृद्धिए यावत् पचाश पस्योपमना श्रायुष्यवाली देवी ते थारण देवलोकना देवताने उपजोग योग्य होय.
हवे ईशानदेवलोके अपरिग्रहिता देवीनां चार लाख विमान बे; तेमांहे जे देवीउनु एक पक्ष्योपम साधिक आयुष्य बे; ते देवी ईशानदेवलोकना देवताने लोगयोग्य . तेवार पनी समयादि वृद्धिए यावत् पन्नर पस्योपमना श्रायुष्यनी देवी ते माहेंज देवलोकना देवताने नोगयोग्य होय. ॥ १७२ ॥ एहज क्रमे करी पूर्व रीते दश पट्योपम वधारतां योग्यपणे पचीश पट्योपमना श्रायुष्यनी देवी लांतक देवलोकना देवताने नोगयोग्य होय. तथा पांत्रीश पट्योपमना आयुष्यवाली देवी सहस्त्रार देवलोकना देवताने नोगयोग्य होय. अने पिस्तालीश पस्योपमना श्रायुप्यनी देवी ते प्राणत देवलोकना देवताने नोगयोग्य होय, अने पंचावन पस्योपमना श्रायुष्यवाली देवी ते अच्चुतदेवलोकना देवताने जोगयोग्य होय. ॥ १७३ ॥
॥हवे देवने लेश्या दोढगाथाए करी कहे ॥ किन्दा नीला काक ॥ तेक पम्हाय सुक्क लेस्सा ॥ नवणवण पढम चनलेस ॥ जोइस कप्प उगे तेज ॥१७॥
कप्पतिय पम्द लेसा ॥ वंताश्सु सुक्कलेस हुंति सुरा ॥ अर्थ-जेणे करी जीव कर्म साथे श्राश्लेष पामे तेने वेश्या कहीएं. ते लेश्याना बे नेद बे. एक अव्यलेश्या तथा बीजी जावलेश्या. त्यां श्रात्माने कालां तथा पीलां अव्यरूप कर्म पुजल संयोग ते अव्यलेश्या, अने आत्माना शुनाशुज परिणाम ते नावलेश्या. ए वात नारकीने अधिकारे प्रकटपणे वखाणशे. ते लेश्याना बनेद . एक कृमा, बीजी नीला, त्रीजी कापोत, चोथी तेजो, पांचमी पद्मथने बही शुक्ल-तेमा जवणवण के०
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