Book Title: Pooja ka Uttam Adarsh
Author(s): Panmal Kothari
Publisher: Sumermal Kothari

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Page 10
________________ भाइयों को ही है । उनके आचार्यों ने जब मूर्ति-पूजा में जल, फूल, फल आदि द्रव्यों के प्रयोग को हिंसायुक्त बतलाया तो उन अनुकर्ताओं को सरल समझ में यह आना स्वाभाविक था कि अरिहंत भगवान् की भक्ति द्वारा परम उत्कृष्ट चारित्र - उत्थान जैसे निर्मल हेतु में ऐसे द्रव्यों का उपयोग यदि हिंसा पूर्ण है, तब अन्य स्थानों पर भी चाहे वे गुरुओं को भक्ति से मिलने वाले लाभ के निमित्त काम में लिए गये हों, चाहे धर्म प्राप्ति के अन्य साधनों के निमित्त काम में लिए गये हों, चाहे अपने जीवन को स्थिर रखने के निमित्त काम में लिए गये हों और चाहे अन्य जीवों की प्रति-रक्षा या प्रतिपालना से मिलने वाले लाभ के निमित्त काम में लिए गये हों; निश्चय ही हिंसायुक्त होंगे । विष तो हर जगह विष हो रहता है । इसी मिथ्या दृष्टि ने समस्त तथ्यों को तोड़-मरोड डाला और विचारों और व्यवहारों में एक भयानक विषमता उत्पन्न कर दी । हमारा तो अब भी निवेदन है कि वे तथ्य को समझे और जैन परपरा की निर्मल मान्यता और व्यवहारो को संसार के सामने यथारूप रखें ताकि कोई भी व्यक्ति भ्रमवश उन्हें मिथ्या या अनुपयुक्त समझ उचित लाभ से वंचित न रहे और न हमारे नादान मतभेदों के कारण जैन दर्शन ससार के लोगों को दृष्टि में उपहास का कारण बने । समय थोड़ा है । हमें मनुष्य-भव से लाभ उठाना है | अपने अमूल्य समय को व्यर्थ नष्ट न कर, निरन्तर आगे बढ़ना ही हमारे लिए अधिक श्रेयस्कर है । मैने अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार मूर्ति-पूजा के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है । इसमें भाषा दोष, कटुता, कटाक्ष, व्यंग्य, अन्योक्ति, कम जानकारी [ख]

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