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है (आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति पृ. १०८) । स्मरण रहे कि यापनीय रविषेण ने पउमचरियं के ध्वज के स्थान पर मीन-युगल को माना है । ज्ञातव्य है कि प्राकृत ‘झय' के संस्कृत रूप 'ध्वज' तथा झष (मीन-युगल) दोनों सम्भव है। साथ ही सागर के बाद उन्होनें सिहासन का उल्लेख किया है और विमान तथा भवन को अलग-अलग स्वप्न माना हैं यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि स्वप्न सम्बन्धी पउमचरियं की यह गाथा श्वेताम्बर मान्य 'नायधम्मकहा' से बिलकुल समान है। अतः यह अवधारणा भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के सम्बन्ध में प्रबल साक्ष्य है।
(७) पउमचरियं में भरत और सगर चक्रवर्ती की ६४ हजार रानियों का उल्लेख मिलता है, जबकि दिगम्बर परम्परा में चक्रवर्तीयों की रानियों की संख्या ९६ हजार बतायी है। अत: यह साक्ष्य भी दिगम्बर और यापनीय परम्परा के विरुद्ध है और मात्र श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में जाता है।
(८) भ. अजितनाथ और भ. मुनिसुव्रतस्वामी के वैराग्य के कारणों को तथा उनके संघस्थ साधुओं की संख्या को लेकर पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में मत वैभिन्य है। किन्तु ऐसा मतवैभिन्य एक ही परम्परा में भी देखा जाता है अतः इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का सबल साक्ष्य नहीं कहा जा सकता है।
(९) पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में बलदेवों के नाम एवं क्रम को लेकर मतभेद देखा जाता है, जबकि पउमचरियं में दिये गये नाम एवं क्रम श्वेताम्बर परम्परा में यथावत् मिलते हैं। अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के पक्ष में एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । यद्यपि यह स्मरण रखना होगा कि पउमचरियं में भी राम को बलदेव भी कहा गया है।
(१०) पउमचरियं में १२ देवलोकों का उल्लेख है जो कि श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतानुरूप है। जबकि यापनीय रविषेण और दिगम्बर परम्परा के अन्य आचार्य देवलोकों की संख्या १६ मानते है अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का प्रमाण माना जा सकता है। __ (११) पउमचरियं में सम्यक्दर्शन को पारिभाषित करते हुए यह कहा गया है कि जो नव पदार्थो को जानता है वह सम्यग्दृष्टि है । पउमचरियं में कही भी ७ तत्त्वों का उल्लेख नहीं हुआ है । पं. फूलचन्द जी के अनुसार यह साक्ष्य ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने के पक्ष में जाता है। किन्तु मेरी दृष्टि में नव पदार्थो का उल्लेख दिगम्बर ३०. णायाधम्मकहा (मधुकर मुनि) प्रथम श्रुतस्कंध, अध्याय ८, २६ । ३१. पउमचरियं ४/५८, ५/९८ । ३२. पद्मपुराण (रविषेण), ४/६६, २४७ । ३३. देखें पउमचरियं २१/२२, पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २२ फूटनोट-३ ।
तुलनीय-तिलोयपण्णत्ती, ४/६०८ । ३४. पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २१ । ३५. पउमचरियं, ७५/३५-३६ और १०२/४२-५४ । ३६. पउमचरियं, १०२/१८१ । ३७. अनेकान्त वर्ष ५, किरण १-२ तत्त्वार्थ सूत्र का अन्त: परीक्षण, पं. फूलचन्दजी पृ. ५१ ।
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