Book Title: Paumchariyam Part 01
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan
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रक्खस-वाणरपव्वज्जाविहाणाहियारो-६/२२४-२४४ एत्तो हेमङ्गपुरे, भोगवईगब्भसंभवा कन्ना । हिमरायस्स य दुहियान्चन्दमई नाम नामेणं ॥२३७॥ मालिकुमारेण तओ, परिणीया सा महाविभूईए । जा निययरूवजोव्वण-गुणेहि दूरं समुव्वहइ ॥२३८॥ पीयंकरस्स दुहिया, पीइमइसमुब्भवा विसालच्छी । पीइपुरम्मि जाया, पीइमहा सुन्दरी नाम ॥२३९॥ सा वि हु सुमालिभज्जा, जाया अच्चन्तसुन्दरावयवा । लक्खमगुणोववेया, रूवेण रई विसेसेइ ॥२४०॥ कणयसिरीकणयसुया, कन्ना कणयावलि त्ति कणयपुरे । तं चेव मालवन्तो, परिणेइ गुणाहियं लोए ॥२४१॥ जुवइसहस्ससमग्गो, संपत्तो उभयसेढिसामित्तं । आणाविसालमउलं, भुञ्जइ माली महारज्जं ॥२४२॥ एयम्मि देसयाले, सुकेसि-किक्किन्धिजणियसंवेगा। पव्वइया खायजसा, पवंगा रक्खसभडा य ॥२४३॥
___ तवचरणसमग्गा दीहकालं गमित्ता, ववगयभय-सोगा नाण-चारित्तजुत्ता। जणियविमलकम्मा रक्खसा वाणरा य, सिवम यलमणन्तं सिद्धिसोक्खं पवन्ना ॥२४४॥ ॥ इति पउमचरिए रक्खस-वाणरपव्वज्जाविहाणो नाम छटो उद्देसओ समत्तो ॥
इतो हेमाङ्गपुरे भोगवतीगर्भसंभवा कन्या। हिमराजस्य च दुहिता चन्द्रमती नाम नाम्ना ॥२३७।। मालिकुमारेण तत: परिणीता सा महाविभूत्या । या निजरुपयौवनगुणै दूंरं समुद्वहति ॥२३८॥ प्रियंकरस्य दुहिता प्रीतिमतीसमुद्भवा विशालाक्षी । प्रीतिपुरे जाता प्रीतिमहासुन्दरी नाम ॥२३९।। साऽपि तु सुमालिभार्या जाताऽत्यन्तसुन्दरावयवा । लक्षणगुणोपपेता रुपेण रति विशेषयति ॥२४०।। कनकश्रीकनकसुता कन्या कनकावलीति कनकपुरे । तामेव माल्यवान् परिणयति गुणाधिका लोके ॥२४१।। युवतिसहस्रसमग्रः संप्राप्त उभयश्रेणीस्वामित्वम् । आज्ञाविशालमतुलं भुनक्ति माली महाराज्यम् ॥२४२॥ एतस्मिन्देशकाले सुकेशि-किष्किन्धिजनितसंवेगाः । प्रव्रजिताः ख्यातयशसः प्लवंगमराक्षसभटाश्च ॥२४३॥ तपश्चरणसमग्रा दीर्घकालं गमयित्वा व्यपगतभयशोका ज्ञानचारित्रयुक्ताः । जनितविमलकर्माणो राक्षसा वानराश्च शिवमचलमनन्तं सिद्धिसौख्यं प्रपन्नाः ॥२४४॥
॥ इति पद्मचरित्रे राक्षस-वानरप्रव्रज्या विधानो नाम षष्टोद्देशकः समाप्तः ॥
१. भयसंगा-मु०। २. ममल मु०।
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