Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 15
________________ पृष्ठ. पंक्ति. १० ११ अशुद्ध. ने १७ २२ जावकी २७ २९ कम १८ २८ कमों १९ २७ प्रत्थर २२ १ उपर २३ २३ दाष्टत ३० ४ ग ३० २९ कीय ३५ < अपेक्षा ६१ १४ श्रीमद्भवान् ८३ ९९ आग्राह्य ८६ २४ मेद ८७ १२ क्षयोमशम ८८ २७ शरिर ९९ २२ शारिरिक १०४ २४ भूद्रान्ति १०५ २ पीताग्वादि शुद्ध. न जीवकी कर्म कर्मों पत्थर ४१ २८ उत् ५४ १४ अलमोनियम एल्यूमीनियम श्रीमद्भगवान् Jain Education International ऊपर दाष्टत न कार्य अपेक्षा उक्त अग्राह्य भेद क्षयोपशम शरीर शारीरिक भूद्भांति पीतत्वादि ११६ ५ घूआं १२६ २५ इसकिये १४९ २२ ज्ञकाकार १५२ २६ अदर्शन १५२ २६ निर्विकित्सा १७७ १२ शसान १८० ५ प्राट १९१ २५ नदेकस्य २११२१ विधीयतामू विधीयताम् ( १४ ) धूआं इसलिये शंकाकार सद्दर्शन निर्विचिकित्सा शासन प्रगट तदेकस्य एष्ट. पंक्ति. शुद्ध. अशुद्ध. २१२ १७ ज्ञान चतना ज्ञान चेतना २१३ १३ यावच्छ्रुताभ्यास यावच्छ्रुताभ्यास २१६ १ ऐकां २१६ १६ प्राप्ति २४६ १ योके २४८ ३ पाबंध २४९ १८ धरी २७१ १२ भी २७२ ४ भी २७३ १७ ज्ञान ३०० १५ मी ३०२ १२ मेइ ३०२ १८ समक् ३०३ १८ असमय एकां व्याप्ति योगके पापबंध धारी ही ही सम्यक् असंयम ३०३ २० संमय संयम ३०३ २२ इंद्रियों इंद्रियोंकी ३०३ ६२८ संयमका संयमको ३१६ २७ अचिंत्यऽखा अचिंत्यस्वा ३१७ १३ अर्हन्ट ३१७ १८ णिवासिगो ३१८ २६ करता ३२२ २८ लकक्खण ३२९ ३० घण्णे ३३६ ११ लग अज्ञान भी भेद ३१९ १३ सुद्दिनं ३२० ५ इस ३२२ २७ सीलोचय धर्म सीलोयधम्म For Private & Personal Use Only अरहंत णिवासिणो करतापना समुद्दिनं रस लक्खण धणे लगा * कहीं कहीं मात्राओं के टूटनेस शब्दोंकी शुद्धिर्भे अन्तर आगया है । ऐसे शब्दों को पाठक महोदय कृपा करके सुधार कर पढ़ें । www.jainelibrary.org

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