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विषय |
संयम धारण करनेका उपदेश
यत्तियोंके मूलगुण उत्तर क्रियारूप व्रतोंका फल
व्रतका लक्षण
व्रतका स्वरूप भावहिंसा से हानि
परका रक्षण भी स्वात्म रक्षण है शुद्ध चारित्र ही निर्जराका कारण है
यथार्थ चारित्र सम्यग्दर्शनका माहात्म्य बंध मोक्ष व्यवस्था
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उपगूहन अंगका लक्षण ..... कर्मो के क्षयमें आत्माकी विशुद्धि....
स्थितिकरण अंगका लक्षण स्वोपकारपूर्वक परोपकार
वात्सल्य अंगका लक्षण ....
प्रभावना अंगका स्वरूप
बाह्य प्रभावना
किन्हीं नासमझोंका कथन
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ज्ञान चेतनाको राग नष्ट नहीं कर सक्ता है सिद्धान्त कथन.....
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(१३)
ध्यानका स्वरूप
छद्मस्थोंका ज्ञान संक्रमणात्मक है.... उपयोगात्मक ज्ञानचेतना सदा
२२८
नहीं रहती .... २१९ सम्यत्तवकी उत्पत्तिका कारण २२६ राग और उपयोग व्याप्ति नहीं है राग सहित ज्ञान शांत नहीं है.... बुद्धिपूर्वक ग बुद्धिपूर्वक राग
२३५
असंयत भाव २३९ | संयमके भेद व स्वरूप २३६ कषायों का कार्य
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विषय । १८९ सम्यक्त्वके भेद......
१९० चारों बंधोंका स्वरूप
१९१ अनुभाग बंध में विशेषता .... १९१ | चेतना तीन प्रकार हैं १९२ सर्व पदार्थ अनंत गुणात्मक हैं .
१९३ | वैभाविक शक्ति.....
१९३ विकृतावस्थामें वास्तव में जीवकी
१९४
हानि
१९९
पांच भावों के स्वरूप
१९९ | गतिकर्मका विपाक
२००
मोहनीय कर्मभेद
२०२
२०४ कर्मों के भेद प्रभेद
२०५
२१२
२१६
२१७
अज्ञान औदयिक नहीं है
२०८
२०९
अवुद्धिपूर्वक मिथ्यात्वकी सिद्धि २१० | आलापोंके भेद.....
२११
बुद्धिपूर्वक मिथ्यात्व दृष्टान्त
नोकषाकके भेद....
नाम कर्मका स्वरूप
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२६६
एक गुण दूसरे में अंतर्भूत नहीं है २६९ औदयिक अज्ञान
२७३.
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कषाय और असंयमका लक्षण
२३८ | असिद्धत्व भाव..... २३९ | सिद्धत्व गुण
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द्रव्य वेदसे भाव वेद में सार्थकता नहीं आती है....
अज्ञानका स्वरूप.. सामान्य शक्तिका स्वरूप
३००
वेदनीय कर्म सुखका बिपक्षी नहीं है ३०१
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