Book Title: Panchadhyayi Purvardha
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakashan Karyalay Indore

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Page 12
________________ विषय । सुख गुण क्या वस्तु है ... अनेकान्तका स्वरूप दुःखका कारण वास्तविक सुख कहां पर है जड़ पदार्थ ज्ञानके उत्पादक नहीं है नैयायिक मतके अनुसार मोक्षका .... स्वरूप निज गुणका विकाश दुःखका कारण नहीं है सम्यग्दर्शनका स्वरूप सम्यग्दर्शनके लक्षणोंपर विचार ..... र.... ज्ञानका स्वरूप.... स्वानुभूतिका स्वरूप श्रद्धादिकों के लक्षण श्रद्धादिकोंके कहनेका प्रयोजन.... प्रशमका लक्षण.... संवेगका लक्षण.... अनुकंपाका लक्षण आस्तिक्यका लक्षण .... गुरूका स्वरुप आचार्यका स्वरूप Jain Education International अमूढ़ दृष्टिका लक्षण ... अरहंत और सिद्धका स्वरूप .... **** ( ११ ) **** पृष्ठ | विषय । ९९ | आदेश और उपदेशमें भेद ९७ गृहस्थाचार्य भी आदेशदेनेका अ धिकारी है ९८ निःशंकितका लक्षण भय कब होता है और भयका लक्षण . व उनके सात नाम .... १३६ निःकांक्षित अंग..... १४६ कर्म और कर्मका फल अनिष्ट क्यों है १५० निर्विचिकित्साका लक्षण १०० १०२ १२१ १२२ १२५ १०५ उपाध्यायका स्वरूप १२६ १३२ १६५ आदेशदेनेका अधिकारी अव्रती नहीं है १६५ गृहस्थोंके लिये दान पूजन विधान अन्यदर्शन १०५ १०७ ११० ११३ ११५ ११७ | बाह्य कारणपर विचार .... आचार्यकी निरीहता ११८ धर्म .... **** .... **** साधुका स्वरूप.... १७२ आचार्य में विशेषता चारित्रकी क्षति और अक्षतिमें कारण १७३ शुद्धआत्माके अनुभवमें कारण..... १७४ चारित्रमोहनीयका कार्य ..... १७४ आचार्य उपाध्यायमें साधुकी समानता १७५ १७७ For Private & Personal Use Only .... .... .... अणुव्रतका स्वरूप महाव्रतका स्वरूप गृहस्थोंके मूलगुण अष्ट मूल गुण जैनमात्रके लिये आवश्यक हैं..... सप्त व्यसन के त्यागका उपदेश अतीचारोंके त्यागका उपदेश दान देनेका उपदेश **** पृष्ठ | १६४ **** जिनपूजनका उपदेश १५२ गुरु पूजाका उपदेश १९९ | जिनचैत्य गृहका उपदेश १५७ तीर्थयात्राका उपदेश १६० | जिन बिम्बोत्सव में संमिलित होनेका १६४ उपदेश १६६ १६८ १६९ १७० १७८ १८१ १८१ १८२ १८२ १८३ १८३ १८४ १८४ १८६ १८६ १८६ १८९ www.jainelibrary.org

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