Book Title: Nandanvan Kalpataru 2008 00 SrNo 21
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 31
________________ Jain Education International रूपावलीप्रभृतिकानि बभूवुरेवाऽभ्यासात् सुसंस्कृतप्रवेशफलानि पूर्वम् । पश्चात्क्रमेण कविकर्मकलापमध्ये तात्पर्यबोधप्रवणा प्रबभूव शक्तिः ॥ ४९ ॥ शक्त्या स्वयं स बुधवर्यविनिर्मितानि गूढार्थकानि चरितान्यधिजग्मिवाँश्च । दुर्बोधमप्यतिसुबोधवचःप्रणाल्या व्याख्यानवल्लघुविबोधकृते जनानाम् ॥ ५० ॥ व्याख्यानकौशलकला तत एव तस्य प्रादुर्बभूव तुलनारहिता नवीना । अभ्यासविघ्नभयतो न तदोपयोगं तस्याश्चकार परमायतिसावधानः ॥ ५१ ॥ संस्कारपाटवमसौ परमाप्य शब्दसाधुत्वबोधनफलामथ शब्दविद्याम् । अध्यैष्ट भावनगराधिपपाठशालाशिक्षानियुक्त बुधतो गुरुसन्निधाने ॥ ५२ ॥ मर्मावबोधनकृते स तु फक्किकासु तत्राऽपि शिक्षकवरान्निपुणत्वमाप । स्वल्पेऽप्यनेहसि परामधिगम्य प्रौढिं विद्वत्सदस्सु प्रतिवादकलां व्यधत्त ॥ ५३ ॥ अभ्यासपद्धतिमिता तनुविस्तृताऽपि किं चन्द्रिका हसति तामपि कौमुदीं नो । भानुर्निदर्शनमभूदिह शिक्षकोऽद्य सोऽप्येतदीयमतितोऽतितुतोष विद्वान् ॥ ५४ ॥ रात्रिन्दिवं पठनतो गुरुसेवयाऽपि काले समाचरणतो विधितः क्रियायाः । प्राग्जन्मसंस्कृतिसमष्टिप्रबोधतोऽथ विद्योल्ल्लास विमलाsस्य विपक्चबुद्धेः ॥ ५५ ॥ २४ For Private & Personal Use Only शासनसम्राड्-विशेष: www.jainelibrary.org

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