Book Title: Nandanvan Kalpataru 2008 00 SrNo 21
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
सद्धर्मदं विजयनेमिमहं प्रणौमि !!
प्रा. अभिराजराजेन्द्र मिश्रः
यस्य स्मृतिर्मनसि सान्द्रसुधानुपानोत्कृष्टं सुखं जनयति द्रुततृप्तिमूलम् । तीर्थङ्कराऽध्वपथिकं तमहं प्रपद्ये
सूर्युत्तमं विजयनेमिमपास्तबन्धम् ॥ १ ॥
सारस्वते तपसि लीनमुदारसत्त्वं ज्ञानप्रदीपविभयाऽपहृतान्धकारम् ।
कारुण्यमूर्तिमपनीतजनार्तिभारं ___ सद्धर्मदं विजयनेमिमहं प्रणौमि ॥ २ ॥
न्यायादिदर्शनगृहे ससुखं प्रविष्टं पारङ्गतं च पदशासनकोशतर्के । छन्दस्यलकृतिपथे च दधत्प्रचारं
वन्दे बुधं विजयनेमिमहं सुधीन्द्रम् ॥ ३ ॥
यत्साहिती सहृदयानधुना धिनोति तत्पाण्डिती प्रमदयत्यनिशं विनेयान् ।
तं नौमि सूरिशतहायनपूर्तियोगे ___ प्राज्ञोत्तमं विजयनेमिजिनोत्तमर्णम् ॥ ४ ॥
-
७०
शासनसम्राड्-विशेषः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146