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नवकार मन्त्र:
महामन्त्र नवकार के प्रथम पांच पदों को पच परमेष्ठी कहा जाता है और इस पञ्च परमेष्ठी की महिमा का विस्तार ही कर रहे है समस्त पागम । तो निश्चित ही इस मन्त्र समूह की अक्षर-योजना में और भाव-योजना मे कोई विशिष्ट विधि अपनाई गई है जिससे यह मन्त्र अचिन्त्य एव असीम शक्ति का उद्गम-स्रोत बन गया है।
सर्व प्रथम इस मन्त्र की यह विशेषता है कि इस मन्व के द्वारा किसी एक विशिष्ट आत्मा के साथ भावात्मक सम्बन्ध नहीं जोड़ा गया, इस मन्त्र द्वारा साधक लोक और अलोक में स्थित उन सभी आत्माग्रो के साथ भावात्मक सम्बन्ध स्थापित करता जाता है, जिन्होने साधना के क्षेत्र में चलते हुए साधना के उच्चतम शिखरो का स्पर्श कर लिया है, अत: यह निश्चित है कि नवकार मन्त्र के साधक को इस मन्त्र द्वारा सभी प्रकार की सहायता उपलब्ध हो जाती है ।
इस मन्त्र की साधना-प्रक्रिया पर गम्भीरता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि मन्त्र-साधक सर्व प्रथम उन दिव्यात्मानो तक पहुचता है जिनके लिये कुछ छोड़ना शेष नही रहा, काम-क्रोधादि त्याज्य सभी विकारो से जो मुक्त हो चुके है, अरिहन्त के लिये 'अरित्व' समाप्त हो जाता है, अत: उसको किसी से भी लड़ना नहीं पड़ता, वह ऐसे समता-शिखर पर विराजमान हो जाता है जहां
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