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महापुरुषों की शारीरिक विद्युतधारा के पीछे उनकी तपःपूत चेतना का प्रभाव होता है, अत: महापुरुषो की विद्युत्धारा मानवीय चेतना को महान् बना देती है ।
महापुरुषों की शारीरिक विद्य त् उनके शरीर का इतना रूपान्तरण कर देती है कि उनके शरीर दिव्य गन्ध से ओतप्रोत हो जाते है । यह विद्य त्धारा ही अष्ट प्रनिहार्यो के रूप मे उपस्थित होती है- उनकी विद्य तधारा 'अशोक वक्ष' बन जाती है, वे जहां बैठते हैं वहा की धरती स्वर्ण-सिंहासन प्रतीत होने लगती है, उनके शरीर से निकलती श्वेतविद्युत्धारा चवरों की प्रतीति कराती है, उनके मस्तक से प्रवाहित होती हुई विद्य त्-धारा छायाकार बन कर उन पर छा जाती है, उनके चारो ओर ध्वनि-तरंगे ऐसी ध्वनियां उत्पन्न करती है जो देव-दुन्दुभि प्रतीत होती है, चारों ओर पुष्प-वर्षा का प्राभास होने लगता है, उनके मुख के चारो ओर प्राभा-मण्डल के रूप में उनका विद्य त-प्रवाह एक वर्तुल बनाकर चमचमाता रहता है और उनकी भाषा विभिन्न भाषा-भाषियो के पास उनकी भाषा में परिवर्तित होकर ऐसे ही पहुंचती है जैसे आधुनिक जड़ विज्ञान राबट द्वारा वक्ता की भाषा को श्रोता की भाषा में परिणत करके पहुंचाता है, परन्तु राबट की शक्ति कुछ भाषानों तक सीमित होती है और 'तीर्थङ्कर' पद-प्राप्त महापुरुषो की ध्वनि-तरगो के पीछे चेतना का दिव्य प्रकाश रहता है, अत:
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