Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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जीवन परिचय
मिलती हैं। सभी कृतियां भक्ति परक है तथा रास एवं कथा संझक हैं सभी में उन्होंने अपना समान परिचय दिया है। इन कुतियों के आधार पर ब्रह्म रायमल्ल मुनि अनन्तवीति के शिष्य थे जो भट्टारक रत्नकीति के पट्टधर शिष्य थे। इन दोनों नामों के अतिरिक्त हिन्दी की किसी भी कृति में उन्होंने अपना धिक परिचय नहीं दिया । १२ अपनी प्रतिम कृति 'परमहंस चौपई' में भी ब्रह्म रायमल्ल ने अपने गुरु एवं दादागुरू का वही नामोल्लेख किया है केवल मुनि सफलकोति का नामोल्लेख और किया है और उसीका दूसरा नाम मुनि रलकीति था जिसको कवि ने अमृतोपम कहा है।
मूल संघ जग तारणहार, सरब गबछ गरवो माचार । सफलकोलि मुनिवर गुनबंत, सा समाहि गुन लही न अंत ॥६४०।। सिंह को अमृत नांव प्रति चंग, रतनोति मुनि गुणा अभंग । अनन्तफीति तास सिष आन, बोले मुख ते प्रमृत बान ।
तास शिष्य जिन चरणा लोन, ब्रह्म रायमल्ल बुषि को होम ।।
उक्त प्रमस्तियों के आधार पर मालोच्य ब्रह्म रायमल्ल मूलसंघ एवं सरस्वती गन्छ के भट्टारक रत्नकीति के प्रशिष्य एवं मुनि अनन्तकीर्ति के शिष्य थे 1 ये ब्रह्म रायमल्ल राजस्थानी विद्वान् थे तथा जिनका इकाहड प्रदेश प्रमुख केन्द्र था ।
दूसरे ब्रह्म रायमल्ल गुजरात के सन्त थे जो संस्कृत के विद्वान् थे। ये बंड जाति के थे तथा जिनके पिता मह्म एवं माता चम्पादेवी थी। भक्तामर स्तोत्र वृत्ति इनकी एक मात्र कृति है जिसको उन्होंने संवत् १६६७ में ग्रीवापुर के चन्द्रप्रभ वत्यालय में समाप्त की थी। संस्कृत के विद्वान् ब्रह्म रायमल्ल ने न तो अपने गुरू का उल्लेख किया है और न मुलसंघ के सरस्वती गच्छ से अपना कोई सम्बन्ध बतलाया है । इस प्रकार दोनों रायमल्ल भिन्न भिन्न विद्वान् है । एक १७वीं शताब्दि के पूर्वाद्ध के हैं और दूसरे रायमरन्ल उसी शताब्दि के उत्तराध के विद्वान् है | हमारे मत का एक और सबल प्रमाण यह है कि प्रथम रायमल्ल की संवत् १६३६ के पश्चात् कोई रचना नहीं मिलती। यदि दोनों रायमल्लों को एक ही मान लिया जावे तो तो प्रथम रायमलन ३१ वर्ष तक साहित्य निर्माण से अपने आपको अलग रखे और फिर ३१ वर्ष पश्चात् 'भक्तामर स्तोत्र वृत्ति' लिखे इसे हम सम्भव नहीं मान सकते ।
श्री मूलसंघ मुनि सरसुती गछ, छोडी ही चारि कपाठ निभंछ । अनन्तीति गुरू विदिती, तासु तणौ सिषि कीयो जी बखाण । ब्रह्म रायमल्ल जगि जाणियो, स्वामी जी पाश्वनाथ को जी थान ।
—नेमिनाथ रास