________________
महाबंधे पदेसबंधाहियारे कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमयं, उक्क० आवलि० असंखेंज । असंखेंजगुणवड्डि-हाणी केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमयं, उक्क० अंतोमुहुत्तं ।
१८. अप्पाबहुगे ति सव्वत्थोवाणि अट्ठसमइगाणि योगहाणाणि । दोसु वि पासेसु सत्तसमइगाणि जोगट्ठाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेंजगुणाणि । दोसु वि पासेसु छस्समइ० दो वि तु० असं०गु० । दोसु वि पासेसु पंचसमइ० दो वि तु० असं०गु० । दोसु वि पासेसु चदुसमइगाणि जोगट्ठाणाणि दो वि तु. असं०गु० । उवरिं तिसमइगाणि० असंखेंजगुणाणि । विस० जोग० असं०गु० ।
एवं जोगहाणपरूवणा समत्ता
पदेसबंधट्टाणपरूवणा १९. पदेसबंधहाणपरूवणदाए याणि चेव जोगट्ठाणाणि ताणि घेव पदेसबंधढाणाणि । णवरि पदेसबंधढाणाणि पगदिविसेसेण विसेसाधियाणि ।
एवं पदेसबंधहाणपरूवणा समत्ता।
सव्व-णोसव्वबंधपरूवणा २०. यो सो सव्वबंधो पोसव्वबंधो णाम तस्स इमो दुविधो णिदेसो-ओषे० है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-यहाँपर वृद्धि और हानिका विचार किया गया है। योगवर्ग असंख्यात होनेसे यहाँ चार वृद्धि और चार हानि ही सम्भव हैं । विवक्षित योगस्थानमें एक जीव है,उसके जितनी वृद्धि या हानि होकर उसे जो योगस्थान प्राप्त होता है,वहाँ वह वृद्धि या हानि होती है। इसी प्रकार सब योगस्थानोंमें वृद्धि और हानिका विचार कर लेना चाहिये।
१८. अल्पबहुत्वकी अपेक्षा आठ समयवाले योगस्थान सबसे स्तोक हैं। इनसे दोनों ही पाश्वों में सात समयवाले योगस्थान दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे दोनों ही पाश्वों में सात समयवाले योगस्थान दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे दोनों ही पार्यो में छह समयवाले योगस्थान परस्परमें समान होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे दोनों ही पावों में पाँच समयवाले योगस्थान दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे दोनों ही पाश्र्व भागोंमें चार समयवाले योगस्थान परस्परमें समान होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे ऊपर तीन समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे हैं और इनसे दो समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे हैं ।
इस प्रकार योगस्थानप्ररूपणा समाप्त हुई।
प्रदेशबन्धस्थानप्ररूपणा १९. प्रदेशबन्धप्ररूपणाकी अपेक्षा जो योगस्थान हैं, वे ही प्रदेशबन्धस्थान हैं। इतनी विशेषता है कि प्रदेशबन्धस्थान प्रकृतिविशेषकी अपेक्षा विशेष अधिक हैं।
इस प्रकार प्रदेशबन्धस्थान प्ररूपणा समाप्त हुई।
सर्व-नोसर्वप्रदेशबन्धप्ररूपणा २०. जो सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध है उसका यह निर्देश है-ओघ और आदेश । ओघ
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org