Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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सिरि- जड़वसहाइरिय विरइय- चुण्णिसुत्तसमणिदं सिरि-भगवंतगुणहरमडारोवइट्ठ
कसायपाहुडं
तस्स
सिरि-वीर सेणाइरियविरइया टीका
जयधवला
तत्थ
चारित्तमोक्खवणा णाम पंचदसमो प्रत्थाहियारो
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* एत्तो से काले पहुडि किट्टीकरणद्धा ।
$ १. एत्तो अस्सकण्णकरण द्वासमत्तीवो उवरिमाणंतरसमय पहुडि किट्टीकरणद्धा होदि । तिस्से परूवणमिदाणि कस्सामो त्ति वृत्तं होइ । संपहि एदिस्से अद्धाए पमाणावहारणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
* छसु कम्मे संतेसु संछुद्धेसु जा कोधवेदगद्धा तिस्से कोधवेदगद्धाए तिणि भागा । जो तत्थ पढमतिभागो अस्सकण्णकरणद्धा, विदियो तिभागो किड्डीकरणद्धा,. तदियतिभागो किट्टीवेदगद्धा |
२. पुरिसवेदचिराण संतकम्मेण सह छसु कम्मेसु संछुद्धेसु तत्तो पहुडि उवरिमा कोवेदगद्धा तिरसे तिसु भागेसु कदेसु तत्थ जो पढमतिभागो सो अस्सकण्णकरणद्धासरूवेण परुविदो, विदियति भागो एसो किट्टीकरणद्धासरूवेण एव्ह पयट्टदे । तदियतिभागो वि उवरि
* हाँसे आगे तदनन्तर समयसे लेकर कृष्टिकरण काल होता है ।
$ १. 'एत्तो' अर्थात् अश्वकर्णकरण कालके समाप्त होनेसे उपरिम अनन्तर समयसे लेकर कृष्टिकरण काल होता है । अत: इस समय उसकी प्ररूपणा करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इस कालके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगे के सूत्रका अवतार करते हैं
* छह नोकषायोंके संक्रमण होनेपर जो क्रोधवेदककाल है उस क्रोधवेदक कालके तीन भाग हैं । उनमें जो प्रथम त्रिभाग है वह अश्वकर्णकरणकाल है, दूसरा त्रिभाग कृष्टिकरणकाल है और तीसरा त्रिभाग कृष्टिवेदककाल है ।
$ २. पुरुषवेदके पुराने सत्कर्मके साथ छह कर्मोंके संक्रमित होनेपर उससे आगे जो क्रोध वेदककाल है उसके तीन भाग करनेपर उनमें जो प्रथम त्रिभाग है वह अश्वकर्णकरणकाल रूपसे कहा गया है, दूसरा त्रिभाग यह कृष्टिकरण काल रूपसे इस समय प्रवृत्त है तथा तीसरा त्रिभाग भी