Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए पंचम मूलगाहाए पढमभासगाहा
९ ३४७. 'मिस्सेण सम्मत्ते मिच्छत्ते' एवं भणिदे सम्मामिच्छाट्ठि सम्माइट्ठि- निच्छाइट्ठीसु पुत्रबद्धाणि किमेदस्स क्खवगस्स अस्थि आहो णत्थि त्ति पुच्छाहिसंबंधेण सम्मत्त नगगणाविसये पृव्वबद्धाणं भय णिज्जाभय णिज्जसरूवेण गवेसणा सूचिदा दटुव्वा । 'केण व जोगोवजोगेण' एदेण वि सत्तावयवेण जोगमग्गणाए णाणदंसगोवजोगमगणाविसए च पुत्रबद्वाणं भयणिज्जाभयणिज्जभावपरखाणिद्दिट्टा दट्ठस्वा । पण्णारसस जोगभेरेस तत्थ केण जोगेण बद्धाणि पुत्रबद्धाणि भणिज्जाणि केण वा ण भणिज्जाणि । तहा सत्तसु छदुमत्यणाणेस् तिन दंसणेसु च कदरेण णाणोवजोगेण च दंसणोवजोगेण च पुव्वबद्धाणि भजियव्वाणि केण वा अभयणिज्जाणि त्ति पुच्छादुवारेस्स तहा विहत्यणिद्दे पडिब द्वत्तदंसणादो । संपहि एदीए गाहाए सूचिदाणमत्थविसेसाणं विहासणमेत्य उत्तर भासवाहाओ अस्थि ति जाणावणट्ठमुत्तरमुत्तमाह
* एत्थ चत्तार भासगाहाओ ।
६ ३४८. सुगमं ।
* तं जहा ।
१३४९. सुगमं ।
(१३४) पञ्जत्तापत्ते मिच्छत णवुंमए च सम्मत्ते ।
कम्माणि अभज्जाणि दु थी पुरिसे मिस्सगे भज्जा ॥ १८७॥
१२९.
६ ३४७. 'मिस्सेण सम्प्रत्ते मिच्छत्ते' ऐसा कहनेपर सम्यग्मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टियों में पूर्वबद्ध कर्म क्या इस क्षपकके हैं या नहीं हैं इस प्रकार पृच्छाके सम्बन्धसे सम्यक्त्वमार्गणा में पूर्वबद्ध कर्मो के भजनीय और अभजनीयस्वरूपसे इस क्षपक के गवेषणा सूचित की गयी जाननी चाहिए। 'केण व जोगोवजोगेण' इस प्रकार सूत्र के इस अवयवने भी योगमार्गेणा तथा ज्ञान और दर्शनोपयोगमार्गणा में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षवत्रके भजनीयरूप: हैं या अभजनीयरूपसे हैं यह परीक्षा निर्दिष्ट की गयी जाननी चाहिए। योग के पन्द्रह भेदों में से वहाँ किस योग के साथ पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं और किस योग के साथ पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपक के भजनीय नहीं हैं यह परीक्षा की गयी जाननी चाहिए। उसो प्रकार सात छद्मस्य ज्ञानों में और तीन दर्शनों में किस ज्ञानोपयोग और किस दर्शनोपयोगके साथ पूर्ववद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं तथा किस ज्ञानोपयोगके साथ और किस दर्शनोपयोग के साथ पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं इस प्रकार पृच्छाद्वारा यह गाथासूत्र इस प्रकारके अर्थका निर्देश करनेमें प्रतिबद्ध देखा जाता है। अब इस गाथाद्वारा सूचित हुए अर्थविशेषोंकी विभाषा करनेके लिए चार भाष्यगाथाए हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस मूलगाथाके अर्थकी प्ररूपणा में चार भाष्यगाथाएं निबद्ध हैं ।
$ ३४८. यह सूत्र सुगम है ।
वह जैसे ।
$ ३४९. यह सूत्र सुगम है ।
(१३४) पर्याप्त और अपर्याप्त अवस्थामें तथा मिध्यात्व, नपुंसकवेद, और सम्यक्त्वमार्गणा में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं। किन्तु स्त्रीवेद, पुरुषवेद और मिश्रमार्गणा में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं ॥ १८७॥
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