Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
पुणो एत्तीयमेत्तीणपुण्य किट्टीणं जइ सयलकिट्टी अद्धाणं लब्भइ, तो एक्किस्से अपुष्व किट्टीए केसियमद्धाणं लभामो त्ति १ । १ । १ पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओर्वाट्टिदाए दिवडगुणहाणितिभागमेकिस्से अgoafकट्टीए लद्धद्धाणं होदि । तं च एदं ४ । तदो सिद्धमसंखेज्जप लिदोवमपढमवग्गमूलमेत्तमद्वाणमुल्लंघियूण एक्का अपुव्वकिट्टी बंधेण निव्वत्तिज्जमाणिया लब्भदित्ति एसा च परूवणा कोह- माण- माया-लोहसंजलणाणं पढमसंगह किट्टीओ पादेक्कं णिरंभियूण जोजेयव्वा । raft कोहसंजणपढमसंगह किट्टीए तेरसगुणमेगकिट्टीदव्वं ठविय तेरासियं कायध्वं । एवमेदं पविय संपहि बंघेण निव्वत्तिज्जमाणीसु पुग्धापुव किट्टीसु णवकबंधपदेसग्गस्स णिसेगक्कमपदंसमुरिमं सुत्तपबंधमाह -
* बज्झमाणयस्स पदेसग्गस्स णिसेगसेढिपरूवणं वत्तहस्सामो ।
६३४. सुगमं ।
* तत्थ जहणियाए किट्टीए बज्झमाणियाए बहुअं । * विदियाए किट्टीए विसेसहीणमणंतभागेण ।
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९÷४= त्रैराशिक करनेपर : अपूर्वं कृष्टियां प्राप्त हुईं। यहाँ फलराशि ९ है, इच्छाराशि १ है और प्रमाणराशि ४ है । अतएव फलराशि ९ से इच्छाराशि १ को गुणित कर प्रमाणराशि ४ का भाग देकर अपूर्व कृष्टियां प्राप्त की गयी हैं ।
पुन: इयत्प्रमाण (3) अपूर्व कृष्टियों का यदि समस्त कृष्टिस्थान ( ९ ) प्राप्त होता है तो एक अपूर्व कृष्टिका कितना स्थान प्राप्त करेंगे इस प्रकार फलराशि ( ९ ) से गुणित इच्छाराशि (१) में प्रमाणराशि (ड) का भाग देनेपर डेढ़ गुणहानि ( १२ ) का त्रिभागमात्र एक अपूर्व कृष्टिका लब्धस्थान (४) प्राप्त होता है । और वह यह है - (४) ।
उदाहरण - अपूर्व कृष्टियां प्रमाणराशि, सक्ल कृष्टि अध्वान ९ फल राशि, इच्छाराशि १, अतः ९× १=९; ९÷१ = ४ अपूर्व कृष्टिका लब्धस्थान । यहाँ त्रैराशिक के नियमानुसार फलराशि ९ से इच्छा राशि १ का गुणा किया गया है और लब्ध ९ में प्रमाणराशि का भाग देकर लब्ध अपूर्व कृष्टि अध्वान ४ प्राप्त किया गया है ।
इसलिए पत्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण स्थानोंको उल्लंघन कर बन्ध निष्पन्न होनेवालो एक अपूर्व कृष्टि प्राप्त होती है । और इस प्रकार यह प्ररूपणा क्रोध, मान, माया और लोभसंज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टियोंमेंसे प्रत्येकको विवक्षित कर योजित कर लेनी चाहिए | इतनी विशेषता है कि क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिके तेरहगुणे एक कृष्टि द्रव्यको स्थापित करके बन्धसे निष्पन्न होनेवालो पूर्व और अपूर्व कृष्टियों में नवकबन्धके प्रदेश पुंजके निषेरु क्रमको दिखलाने के लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब बध्यमान प्रवेशपुंजके निषेकोंसम्बन्धो श्रेणिप्ररूपणाको बतलावेंगे ।
६६३४. यह सूत्र सुगम है ।
वहाँ बध्यमान जघन्य कृष्टिमें बहुत प्रदेशपुंज देता है।
* दूसरी कृष्टिमें अनन्तवाँ भाग विशेष होन देता है ।