Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 332
________________ खवगसेढोए किट्टीणं अप्पाबहुअपरूवणा २९९ भागमेत्तो होदि । पुणो कोहतदियसंगहकिट्टीए माणपढमसंगहकिट्टिम्मि पक्खित्ताए सोलसचउवोसभागा होति । एवं होदि ति कादूण तेरस-चउवीसभागमेत्तायामकोहपढमसंगहकिट्टीदो सोलसचवीसभागमेत्तायामा माणपढमसंगहकिट्टी विसेसाहिया जादा; तिण्हं चउवीसभागाणं पुनमसंताणमत्थपरिप्फुडमेव पदेसदसणादो-४। * माणे संछुद्धे मायाए पढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टीओ विसेसाहियाओ। ६७४६. इमाओ एगूणवीसखंडमेत्तायामाओं भवंति, पुटिवल्लायामम्मि माणविदिय-तदिय. संगहकिट्टोआयामेहि सह अप्पणो मूलायामस्स जहाकममेव पवेसदसणादो। तेण कारणेणेदाओ विसेसाहियाओ जादाओ३४। * मायाए संछुद्धाए लोभस्स पढमसंमहकिट्टीए अंतरकिट्टीओ विसे साहियाओ। ६७४७. एदाओ वावीसखंडमेत्तिओ भवंति, पुचिल्लायामम्मि पुस्वमसंताणं तिण्हं खंडाणमेत्थ पविट्ठाणमुवलंभादो। तेण कारणेण मायापढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टोणमायामो विसेसाहियो जादो ३३। * सुहमसांपगइयकिट्टीओ जाओ पढमसमये कदाओ ताओ विसेसाहियाओ। ६७४८. एवाणि चउवीसखंडाणि भवंति । तेण कारणेण लोभपढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टीण प्रमाण होता है। पुनः क्रोधको तीसरी संग्रहकृष्टि के मानकी प्रथम संग्रहकृष्टि में प्रक्षिप्त होनेपर उसका आयाम १ भाग प्रमाण होता है। इस प्रकार होता है ऐसा समझकर २४ भागप्रमाण आयामवाली क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिसे ३४ भागप्रमाण आयामवाली मानकी प्रथम संग्रहकष्टि विशेष अधिक हो गयी है। यहाँपर पहिल असत्स्वरूप ४ भागका स्पष्टरूपसे प्रवेश देखा जाता है-४। * मानके मायामें संक्रमित होनेपर उसकी प्रथम संग्रहकृष्टिको अन्तरकृष्टियां विशेष अधिक हैं। 5७४६. ये ३१ भागप्रमाण आयामवाली होती हैं, क्योंकि पहिलेके आयाममें मानकी दूसरी व तीसरी संग्रहकृष्टियोंके आयामके साथ यहाँपर अपने मूल आयामका क्रमानुसार हो प्रवेश देखा जाता है । इस कारण ये विशेष अधिक हो गयो हैं-३१। * मायाको लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमित होनेपर उसको अन्तरकृष्टियां विशेष अधिक हैं। ६७४७. ये बावीस ( २२ ) भागप्रमाण होती हैं, क्योंकि पहिले असत्स्वरूप प्रविष्ट तीन भाग यहां पहिलेके आयाममें उपलब्ध होते हैं इस कारण मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिको अन्तरकृष्टियोंका आयाम विशेष अधिक हो गया है-३३ । जो सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियां प्रथम समयमें की गयी हैं वे विशेष अधिक हैं। 5७४८. ये २४ (चौबीस ) भागप्रमाण होती हैं। इस कारण लोभ संज्वलनको प्रथम

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