Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 331
________________ २१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पुणो वि एदिस्से चेव सुहुमसांपराइयकिट्टीए आयामविसेसजणिदमाहप्पपदंसणट्ठमुवरिममप्पाबहुमपबंधमाढवेइ * कोहस्स पढमसंगहकिटीए अंतरकिटीओ थोवाओ। ६७४४. कोहपढमसंगहकिट्टीए जाओ अवयकिट्टीओ ताओ उरिमपदावेक्खाए थोवाओ त्ति भणिदं होदि । एदासिमायामपमाणं केत्तियादि भणिदे तेरसखंडमेत्तमिदि भणामो। ताणि तेरस खंडाणि कधमुप्पण्णाणि ति पुच्छिदे मोहणीयसयलपदेसपिंडस्स अट्ठमभागमेतं दव्वं कोहसंजलणो लहइ। पुणो एवमट्ठमभागदव्वमप्पणो तिसु वि संगहकिट्टीसु समयाविरोहेण विहंजिण चिदि त्ति पढमसंगहकिट्टीए मूलदवं मोहणीयसयलदवावेवखाए चउवीसभागमेत्तं होदि। संपहि णोकसायदव्वं पि सम्वं तीए चेव समुवलद्धमिदि तेण सह तेरस-चउवीसभागा जादा। तेसिमेसा ठवणा १३। जदो एवं दवविसेसो, तदो तदणुसारेणेव पढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टोअद्धाणं पि तेरस-चउवीसभागमेत्तं चेव होदि त्ति सिद्धं । * कोहे संछुद्धमाणस्स पढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टोओ विससाहियाओ। ६७४१. तेरस-चउवीसभागमेत्तायामकोहपढमसंगहकिट्टी जाधे कोहविदियसंगहकिट्टीए उरि पक्खित्ता होदि ताधे तिस्से अंतर्राकट्टीआयामो चोदस-चउवीसभागमेत्तो होदि । पुणो विवियसंगहकिट्टिम्मि तदियसंगहकिट्टीए उरि संपविखत्ताए तिस्से आयामो पण्णारसचउवीस ___ अब फिर भी इसी सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टिके आयामविशेषरूप उत्पन्न हुए माहात्म्यको दिखलानेके लिए आगेके अल्पबहुत्वप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिको अन्तरकृष्टियां सबसे थोड़ी हैं। ६७४४. क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिको जो अवयव कृष्टियाँ हैं वे उपरिम कृष्टियोंको अपेक्षा थोड़ी हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इनके आयामका प्रमाण कितना है ऐसा कहनेपर वह तेरह खण्ड ( भाग) प्रमाण है ऐसा हम कहते हैं। शंका-वे तेरह खण्ड कैसे उत्पन्न होते हैं ? समाधान-ऐसी पृच्छा होनेपर उत्तर देते हैं-मोहनीयके सम्पूर्ण प्रदेशपिण्डका आठवें भागप्रमाण द्रव्यको संज्वलन प्राप्त करता है। पुनः इस आठवा भागप्रमाण द्रव्य अपनी तीनों ही संग्रह कृष्टियों में समयके अविरोधपूर्वक विभक्त हो करके अवस्थित रहता है इस प्रकार प्रथम संग्रहकृष्टिका मूल द्रव्य मोहनोय कर्मके समस्त द्रव्यको अपेक्षा चोबीस भागप्रमाण होता है। अब नोकषायका भी समस्त द्रव्य उसीमें उपलब्ध हो गया है, इसलिए उसके साथ क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिका सम्पूर्ण द्रव्य ३१ (तेरह बटे चौबीस) भागप्रमाण हो गया है। उसकी यह स्थापना२१ है, चूंकि द्रव्यविशेष इस प्रकार है, इसलिए उसके अनुसार ही प्रथम संग्रह कृष्टिकी अन्तर. कृष्टियोंका आयाम भी ३ भागप्रमाण ही होता है यह सिद्ध हुआ। * कोषमें संक्रमित होनेवाली प्रथम संग्रहकृष्टिको अन्तरकृष्टियां विशेष अधिक हैं। ६०४५.११ भागप्रमाण आयामवाली क्रोषकी प्रथम संग्रहकृष्टि जब क्रोधकी दूसरी संग्रहकृष्टिके ऊपर प्रक्षिप्त होती है तब उसको अन्तरकृष्टियोंका आयाम भागप्रमाण होता है। पूनः दूसरी संग्रह कृष्टिके तीसरी संग्रहकृष्टिके ऊपर प्रक्षिप्त होनेपर उसका आयाम ३५ भाग

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