Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 336
________________ ३०३ खवगसेढोए किट्टीणं अप्पाबहुअपरूवणा परूवणं काढूण संपहि एत्तो विदियसमये जो पवृत्तिविसेसो सुहुमसांपराइयकिट्टीकरणपडिबद्धो तणिग्णयकरणट्ठमुवरिमो सुत्तपबधो * सुहुमसांपराइयकिट्टीकारगो विदियसमये अपुवाओ सुहुमसांपराइयकिट्टीओ करेदि असंखेज्जगुणहीणाओ । * ताओ दोसु ठाणेसु करेदि । * तं तहा* पढसमये कदाणं हेट्ठा च अंतरे च । * हेट्ठा थोवाओ। * अंतरेसु असंखेज्जगुणाओ। $ ७६१. एदाणि मुत्ताणि सुगमाणि। एवं विदियसमये सुहृमसांपराइयकिट्टीओ णिव्वत्ते. माणस्स पुवापुटवसुहुमसांपराइयकिट्टीसु बादरसांपराइयकिट्टीसु च तक्कालोकाड्डदपदेसग्गस्स केरिसो सेढिपरूवणा होदि त्ति आसंकाए पिण्णयविहाणहमुरिमं सुत्तपबंधमाढवेइ * विदियसमये दिज्जमाणगस्स पदेसग्गस्स-सेढिपरूवणा । ६७६२. सुगम। . . www साम्परायिक कृष्टिकारकके प्रथम समय में दिये जानेवाले प्रदेशपंजकी श्रेणोप्ररूपणा करके अब इससे दूसरे समयमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकारकसे सम्बन्ध रखनेवाली जो प्रवृत्तिविशेष होती है उसका निर्णय करने के लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है * सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकारक क्षपक जीव दूसरे समयमें धसंख्यातगुणी होन अपूर्व सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको करता है। * उन कृष्टियोंको दो स्थानोंमें करता है। * वह जैसे। * प्रथम समयमें की गयी कृष्टियोंके नीचे करता है, अन्तरालमें करता है। के नीचे थोड़ो कृष्टियोंको करता है। * तथा अन्तरालोंमें असंख्यातगुणी कृष्टियोंको करता है। ६७६१. ये सूत्र सुगम हैं। इस प्रकार दूसरे समयमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको रचना करनेवाले क्षपक जीवके पूर्व और अपूर्व सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें तथा बादरसाम्परायिक कृष्टियों में तत्काल अपकर्षित होनेवाले प्रदेशपुंजकी श्रेणिप्ररूपणा केसो होती है ऐसो आशंकाके निर्णयका विधान करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * अब दूसरे समयमें दिये जानेवाले प्रवेशपुंजको श्रेणिप्ररूपणा कहते हैं। 5७६२. यह सूत्र सुगम है।

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