Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 356
________________ aar ढोए तत्थ दिज्जमानपदेर ग्गपरूवणा ३२३ * चरिमादो अंतरष्ट्ठिदीदो पुव्वसमये जा विदियट्ठिदी तिस्से आदि हिदीए दिज्ज माणगं पदेसगं संखेज्जगुणहीणं । ६८०८. कुदो ? अंतरद्विदीसु पुव्वुत्तदव्वस्स संखेज्जे भागे णिसिंचियूण पुणो सेस खेज्जदिभागमेत्तदव्वमंतरायामादो संखेज्जगुणविदियट्ठिदीए जहापदिभागं णिसिवमाणस्स परिप्फुडमेवेदम्म संधिविसये दिज्जमानपदेसग्गस्स संखेज्जगुण होणत्तदंसणादो। एत्थ जइ वि सुहुमसांपराइयकिट्टीणं द्विदी अंतरापुरणवसेण एक्का चेवेज ादा तो वि अणियचिरिमसमयावेक्ख ए पढम-विदयद्विदिभेदं काढूण अंतरचरिमट्ठिदी विदियट्ठिदी आदिट्टिदो च घेत्तव्वा त्ति जाणावणट्टं दोसु वि एदेसु सत्तेसु पुव्वसमयणिद्दे सो कओ दट्ठव्वो । जइ वि एत्थ अंतरट्ठिदीसु ओकड्डिदसयलदव्वस्स संखेज्जविभागमेत्तमेव दव्वं णिसिचदि, विदियट्टिदीए च संखेज्जे भागे णिसिचदि त्ति घेप्पइ तो वि पय सिद्धी त्थि पडिबंधो; अंतरायामादो विदियट्ठिदिआयामस्सा संखेज्जगुणत्तमस्सियण तस्स सिद्धीए बाहाणुवलंभादो । एवमेवम्मि संधिविसये संखेज्जगुणहीणं पदेसणिसेगं काढूण संपहि एत्तो उवरिमेट्ठिदिविसेसेस पदेसणिसेगमेवं कुणदि त्ति पटुप्पायणट्ठ मुत्तरसुत्तमोइण्णं - * तत्तो विसेसहीणं । $ ८०९. एत्तो परमेगेगगोवुच्छविसे सहाणीए विसेसहीणं पदेसणिक्खेवं कुणमाणो गच्छदि जव सुमसां पराइय किट्टीण मुक्कस्सट्ठिदीदो समयाहियावलियमेत्तं हेट्ठा ओसरि दिदि * अन्तिम अन्तरसम्बन्धी स्थितिसे पूर्व समय में जो द्वितीय स्थिति है उसको आदि स्थिति में जो प्रदेशपुंज दिया जाता है वह संख्यातगुणा हीन होता है । $ ८० ८. क्योंकि अन्तरसम्बन्धी स्थितियों में पूर्वोक्त द्रव्यके संख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्यको सिंचन करके पुनः शेष असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यको अन्तर आयाम से संख्यातगुणी द्वितीय स्थिति में विभाग के अनुसार सिंचन करनेवाले क्षपक जोवके स्पष्ट ही इस सन्धिस्थान में दिया जानेवाला प्रदेशपुंज संख्यातगुणा हीन देखा जाता है । यहाँपर यद्यपि सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों को स्थिति अन्तरके भर देनेके कारण एक ही हो गयी है तो भी अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयकी अपेक्षा प्रथम और द्वितीय स्थितिका भेद करके अन्तरकी अन्तिम स्थिति और द्वितीय स्थितिकी आदि स्थिति ग्रहण करनी चाहिए इस बातका ज्ञान करानेके लिए इन दोनों ही सूत्रों में पूर्व समयका निर्देश किया गया जानना चाहिए । यद्यपि यहाँपर अन्तरस्थितियों में अपकर्षित समस्त द्रव्यके संख्यातवें भागप्रमाण ही द्रव्यका सिंचन करता है और द्वितीय स्थिति में संख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्यका सिंचन करता है ऐसा ग्रहण करते हैं तो भी प्रकृत अर्थसिद्धि कोई प्रतिबन्ध नहीं है, क्योंकि अन्तरके आयामसे द्वितीय स्थितिके आयामके संख्यातगुणपनेका आश्रय करके उसकी सिद्धिमें कोई बाधा नहीं पायी जाती। इस प्रकार इस सन्धिस्थान में संख्यातगुणहीन प्रदेशनिषेकको करके अब इससे उपरिम स्थितिविशेषों में प्रदेश - निषेकको इस प्रकार करता है इस बातका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है * उससे आगे विशेषहीन द्रव्यको देता है । $ ८०९. इसके आगे एक एक गोपुच्छा विशेष की हारिद्वारा विशेषहीन प्रदेशनिक्षेप करता हुआ सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण स्थिति १. आ प्रती एक्को चेव इति पाठः ।

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