Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढोए दसमगुणट्ठाणसंपत्तिपरूवणा
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उवरिमाणतराए एविकस्से द्विदीए असंखेज्जगुणं पदेसगं निसिचदि । गुणसेढिपयत्तेण विणा वि दवमाहपमस्सियूण तत्थ णिसिंचमाणपदेसग्गस्स उहाभावोवलंभादो ।
* दो विसेसहीणं ।
$ ८१८. किं कारणं ? तत्तोप्पहूडि ओकडिदसयलदव्वस्सा संखेज्जे भागे एगो च्छायारेण निसिचमाणस्स पयारंतरासंभवादो। एत्तो बिदियादिसमयेसु वि एसा चेव सेढिपरूवणा जाव निरुद्ध दिखंडयं समत्तं त्ति । एवभुवरिमट्ठिदिखंडएसु वि एसो चेव दिज्जमानपदेसग्गस्स णिसेगविष्णाक्कमो अणुगंतव्वो जाव दु चरिमट्ठिदिखंडयचरिमफालि त्ति । णवरि सम्वट्ठिदिखंडएस जाव चरिमफाली ण णिवददि ताव ओोकडुिज्जमाणदव्वं सयलद व्दस्सासंखेज्जदिभागमेत्तं चेव होदि । चरिमफालीए णिवदमाणाए पुण ट्ठिदिखंडयादो आगच्छमाणदव्वं सयलदव्वस्स संखेज्जदिभागमेत्तं चैव होदित्ति घेत्तव्वं । संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडीकरणट्ठमुवरिममप्पणा सुत्तमाह
तो पासप रायस्स जाव मोहणीयस्स ट्ठिदिघादो ताव एस कमो ।
६. १९. यत्थमेदं सुतं । णवरि चरिमट्ठिदिखंडयविसये को विविसेससंभवो अत्थि तस्स फुणीकरणट्ठमुवरि कस्सामो । एदमेत्तिएण सुत्तपबंधेण सुहुमसांपराइयपढमसमय पहुडि दिज्जमानपसग्गस्स सेढिपरूवणं काढूण संपहि तत्थेव दिस्समाणपदेसग्गस्स केरिसमवद्वाणं होदित्ति काणिकरणट्ठमुवरिमं सुत्तपबंधमाह -
प्रवृत्त हुए बिना भी द्रव्यके भाहात्म्यका आश्रय करके उसमें सींचे जानेवाले प्रदेशपुंजका उस प्रकारका कार्य होता हुआ उपलब्ध होता है ।
उसके बाद विशेषहीन द्रव्य होता है ।
8 ८१८. शंका - इसका क्या कारण है ?
समाधान - क्योंकि उससे लेकर अपकर्षित हुए समस्त द्रव्यके असंख्यातवें भागमें एक गोपुच्छाके आकारसे सिंचन करनेवाले क्षपक जीवके प्रकारान्तर सम्भव नहीं है ।
इससे द्वितीयादि समयोंमें भी विवक्षित स्थितिकाण्डक के समाप्त होनेपर यही श्रेणिप्ररूपणा होती है, इस प्रकार उपरिम स्थितिकाण्डकों में भी यही दीप्यमान प्रदेशपुंजके निषेक विन्यासका क्रम अन्तिमस्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिके प्राप्त होने तक जानलेना चाहिए। इतनी विशेषता है सब स्थितिकाण्डकों में जबतक अन्तिमफालि पतित नहीं होती है तबतक अपकर्षित होनेवाला द्रव्य समस्त द्रव्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही होता है । किन्तु अन्तिमफालिके पतित होनेपर पुनः स्थितिकाण्ड से आनेवाला द्रव्यं समस्त द्रव्यके संख्यातवें भागप्रमाण ही होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिए अगले अर्पणासूत्रको कहते हैं—
* यहाँसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके जबतक मोहनीय कर्मका स्थितिघात होता है तबतक यही क्रम प्रवृत्त रहता है।
$ ८१९. यह सूत्र गतार्थ है । इतनी विशेषता है कि अन्तिम स्थितिकाण्डकके विषयमें जो कुछ भी विशेष सम्भव है उसको स्पष्ट करने के लिए आगे कहेंगे । इसप्रकार इतने सूत्र प्रबन्ध द्वारा सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके प्रथम समयसे लेकर दिप्यमान प्रदेशपुजकी श्रेणिप्ररूपणा करके अब वहीं पर दीप्ययान प्रदेशपुंजका किस प्रकारका अवस्थान होता है ऐसा आशंकाका निर्णय करनेके लिए आगे के सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
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