Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 363
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * पढमसमयसुहुमसांपराइयस्स जं दिस्सदि पदेसग्गं तस्य सेढिपरूवणं वसामो | $ ८२०. सुगमं । ३३० * तं जहा । ९ ८२१. सुगमं । * पढमसमय सुहुमसांपराइयस्स उदये दिस्सदि पदेसग्गं थोवं । बिदियाए fare असंखेज्जणं दीसदि । एवं ताव जाव गुणसेटिसीसयं ति गुणसेटिसीसयादो अण्णा च एक्का द्विदीति । १८२२. किं कारणं; एदम्मि अद्धाणे दिज्जमाणस्सेव दिस्समाणस्स वि पदेसग्गस्स असंखेगुणा सेढी समवाणदंसणादो । * तत्तो विसेसहीणं ताव जाव चरिमअंतरट्ठिदिति । ९८२३. दिज्जमानपदेसग्गरसानुसारेणेवत्थ दिस्समाणपदेसग्गरस वि विसेसहाणीए समयठास परिफुडवलं भादो । * तत्तो असंखेज्जगुणं । ९ ८२४. सुगमं । * तत्तो विसेसहीणं । * प्रथम समय में सूक्ष्मसाम्परायिक क्षेपकके जो प्रवेशपुंन दिखाई देता है उसकी श्रेणिप्ररूपणाको बतलायेंगे । ९८२०. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे । ९८२१. यह सूत्र सुगम है । * प्रथम समय में सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके उदयमें स्तोक प्रदेशपुंज दिखाई देता है । दूसरी स्थिति में असंख्यातगुणा प्रदेशपुंज दिखाई देता है । इसी प्रकार गुणश्रेणिशीषं और गुणश्रेणिशीर्ष से अन्य एक स्थितिके प्राप्त होनेतक यही क्रम चालू रहता है। ९ ८२२. शंका - इसका क्या कारण है ? समाधान - इस स्थानपर दीप्यमान प्रदेशपुंजके समान ही दीखनेवाले प्रदेशपुंजका भी असंख्यात गुणश्रेणिरूपसे अवस्थान देखा जाता है | * उसके आगे अन्तिम अन्तरस्थितिके प्राप्त होने तक विशेष हीन ग्रन्थ दिखाई देता है । ९ ८२३. दीप्यमान प्रदेशपुंजके अनुसार ही दीखनेवाले प्रदेशपुंजका भी विशेष हामिरूपसे अवस्थान स्पष्ट उपलब्ध होता है । * उससे आगे असंख्यातगुणा प्रदेशपुंज दिखाई देता है । ६ ८२४. यह सूत्र सुगम है । * उससे आगे विशेष हीन प्रदेशपुंज दिखाई देता है।

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