Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 388
________________ ३५५ शुद्धिपत्र - V तस्स १०२ कर्म १३३ अशुद्धि शुद्धि सेडीए सेढीए पविसमाणगुणगारो पविसमाणगुणगारो तन्स अणंतणत्त अणंत्तगुणत्तणदेण णेदेण सतकम्ममटू बस्साणि संतकम्ममट्ट लम्साणि उच्छिट्ठा उच्छिट्टाभागग्गण भागग्गेण पदसगं पदेसग्गं (१३२) (१२२) (१३४) (१२४) (१३५) (१२५) १०४ (१२६) १०६ कम्म १०६ (१९०) (१८०) १०८ मासगाहाए भासगाहाए ॥२३१॥ ॥२०१ १७३ भागप्रमाण काल तक निरन्तर भागप्रमाण १८९ गाहाआ गाहाओ २०५ गाहा गाहाए थोवाआ थोवाओ महाप्रमाण माहप्रमाण संगह किट्टीसु संगहक्ट्ठिीसु णिवत्तिज्जयाणियाणं णिवत्तिज्जमाणियाणं किय २८७ संक्रमाण संक्रयमाण ३०१ किट्टीसु पढम किट्टीसु जं पढम३२१ ३२२ अंतढि दिसु अंतरट्ठिदीसु चेवज दा चेव जादा ३२५ कालम खे कालमसंखेसूचना-यहाँ जितना भी शुद्ध पाठ यहाँ दिया गया है उसे देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें संशोधन-सम्बन्धी दोष नहीं के बराबर हुआ है । किन्तु प्रेस को असावधानी अधिक है । प्रूफ जिस प्रकारका दिया गया है उतनी मुद्रण में सावधानी नहीं बरती गई है । मात्राओंकी अशुद्धि बहुत है। हिन्दी अनुवादोंमें तो इन मात्राओंका मुद्रित न होना पद-पदपर दृष्टिगोचर होता है । २३५ २४७ २७१ २७५ किथ x २२३

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