Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 335
________________ ३०२ जयचंवलासहिदै कसायपाहुडे $७५८. सुगममेदं पि सुतं । एवं च सुहमसांपराइयकिट्टीसु मिसित्तासेसदव्वं तत्कालीकट्टिदसयलदस्वस्सासंखेज्जभागमेत्तमिदि घेत्तव्वं । संपहि एत्तो उवरि बादरकिट्टीसु सेसमसंखेज्जदिभागमेत्तदव्वमेदेण कमेण णिसिंचदि त्ति जाणावण?मत्तरसुत्तमोइण्णं * चरिमादो सुहुमसांपराइयकिट्टीदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीएं दिज्जमाणगं पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं । ६७५९. चरिमाए सुहुमसांपराइयकिट्टीए अणंतरपरूविदबहुभागदव्वं सुहमसांपराइयकिट्टी. अद्धाणेण खंडिदेयखंडं चडिदद्धाणद्धामेत्तविसेसेहि परिहोणं काढूण णिसिंचति । पुणो सेसमसंखेज्जविभागमेत्तदव्वं बादरकिट्टीअद्धाणेण खंडिदेयखंडमेत्तं विसेसाहियं कादण जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए णिसिंचदि। सरिसं च बादरसुहुमसापराइयकिट्टीणमद्धाणमणंतरपरूविदेण णायेण । एदेण कारणेण चरिमादो सुहुमसांपराइयकिट्टीदो उपरि जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए णिसिंचमाणदव्वं पयारंतरपरिहारेणासंखेज्जगुणहीणमिति होवि त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्यो। * तदो विसेसहीणं । ६७६०. एतो उवरि सम्वत्थेव विसेसहीणं णिसिंचदि अणंतभागेण जाव चरिमबावर. सांपराइकिट्टि ति। एवं सुहुमसांपरराइयकिट्टीकारयस्स पढमसमये दिज्जमाणपदेसग्गस्स सेढि $ ७५८. यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें निक्षिप्त हुआ सम्पूर्ण द्रव्य तत्काल अपकर्षित हुए समस्त द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । अब इसके आगे बादर कृष्टियोंमें शेष असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यको इस क्रमसे सींचता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र अवतीर्ण हुआ है * अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि से जघन्य बादर साम्परायिक कृष्टि में दिया जानेवाला प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा होन. है। ६७५९. अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिके अनन्तर पूर्व कहे गये बहुभाग द्रव्यको सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिके काल द्वारा एक भागप्रमाण द्रव्यको जितने स्थान आगे गये हैं उतने कालप्रमाण विशेषोंके द्वारा होन करके सिंचन करता है । पुनः शेष असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यको बादर कटिके आयाम द्वारा भाजित करके एक भागप्रमाण द्रव्यको विशेष अधिक करके जघन्य बादर साम्परायिक कृष्टिमें सींचता है और इस प्रकार अनन्तर कहे गये न्यायके अनुसार बादर सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका आयाम समान होता है इस कारण अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिसे ऊपर जघन्य बादर सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें सींचा जानेवाला द्रव्य अन्य प्रकारसे सम्भव न होनेके कारण संख्यातगुणा हीन है यह इस सूत्रका भावार्थ है। * उससे आगे सर्वत्र उत्तरोत्तर विशेष हीन द्रव्यका सिंचन करता है। ६७६०. इससे आगे सर्वत्र ही अन्तिम बादर साम्परायिक कृष्टिके प्राप्त होने तक उत्तरोत्तर अनन्तभागहीनके क्रमसे विशेष होन द्रव्यका सिंचन करता है। इस प्रकार सूक्षा

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