Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 348
________________ खवगसेढीए किट्टोणं संकमणियमपस्वणा ३१५ * कोहस्स चेव पढमसंगहकिट्टीदो कोहस्स चेव तदियसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । ६७८८. पुग्विल्लपडिग्गहादो एसो पडिम्गहो विसेसाहिओ, तेण कारणेण संकमवव्वमेवं विसेसाहियमिदि णिहिट। * कोहस्स पढमकिट्टीदो कोहस्स चेव विदियसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । ६७८९. उदीरिज्जमाणकिट्टीदो तदणंतरहेट्ठिमकिट्टीए गच्छमाणपदेसगं सम्वेहितो बहुगं होदि, तदायारेण तस्स सव्वस्सेव पच्चासण्णकालेण परिणमणणियमदंसणादो। तेण पुग्विल्लपडिग्गहादो जइ वि एसो पडिग्गहो विसेसहोणो तो वि एत्थतणसंकमवन्वं संखेज्जगुणमेवेत्ति घेत्तव्वं । ____ * एसो पदेससंकमो अइकतो वि उक्खेदिदो सुहुमसापराइयकिट्टीसु कीरमाणीसु आसओ त्ति कादण । ६७९०. एदस्सत्थो वुच्चदे-एसो पदेससंकमो बादरकिट्टीविसयो 'अइक्कतो वि उक्खेदिवों' अइक्कंतावसरो वि संतो पुणरुक्विविदूण भणियो। किमट्ठमेवं भणिज्जदि ति चे ? 'सुहमसांपराइयकिट्टोसु कीरमाणीसु आसो ति कादूण' सुहमसापराइयकिट्टीसु कीरमाणीसु जो पदेस. संकमो पदिदो तस्स कारणभूवो ति कादूण अइक्कंतावसरो वि होतो एसों पदेससंकमो पुणरुच्चइदूण भणिदो त्ति वुत्तं होइ। कधमेसो बादरकिट्टीविसयो पदेससंकमो सुहमसांपराइय * क्रोधको ही प्रथम संग्रहकृष्टिसे क्रोधको ही तीसरी संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशपुंजको संक्रम करता है। ६७८८. पहलेके प्रतिग्रहसे यह प्रतिग्रह विशेष अधिक है। इस कारण यह संक्रम द्रव्य विशेष अधिक है ऐसा निर्देश किया है। * क्रोधको प्रथम कृष्टिसे क्रोधको ही दूसरी संग्रह कृष्टिमें संख्यातगुणे प्रदेशपुंजको संक्रम करता है। ६७८९. उदीयमान कृष्टिसे तदनन्तर अधस्तन कृष्टिमें संक्रमित होनेवाला प्रदेशपुंज सबसे अधिक होता है, क्योंकि तदाकार-रूपसे उस सबके ही प्रत्यासन्न कालके साथ परिणमनका नियम देखा जाता है। इस कारण पहलेके प्रतिग्रहसे यद्यपि यह प्रतिग्रह विशेष हीन है तो भी यहांका संक्रम द्रव्य संख्यातगुणा ही है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। ॐ यह प्रदेशसंक्रम यद्यपि अतिक्रान्त हो गया है तो भी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका बाश्रयभूत है ऐसा समझकर पुन: उठाकर कहा गया है। ६७९०. अब इसका अर्थ कहते हैं-बादरकृष्टिका विषयभूत यह प्रदेशसंक्रम यद्यपि 'अइक्कतो वि पखेदि दो' अतिक्रान्त अवसरको प्राप्त होता हुआ भी पुनः उठाकर कहा गया है। शंका-ऐसा किस लिए कहा जाता है? समाधान-सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंके किये जानेमें आश्रयभूत है ऐसा समझकर अर्थात् समसाम्परायिक कृष्टियोंके किये जाने में जो प्रदेशसंक्रम प्राप्त होता है उसका कारणभूत है ऐसा

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